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________________ गनाद ॥ ८ ॥ तुं साहिब तुंहि वचल सही, पुण्यें ताहरी सेवा लही ॥ हुं हवे थयो कृतारथ स्वाम, हुं बलिहारी ताहारे नाम ॥ एए ॥ साहिब तुं मुऊ प्राण आधार, देखी पामुं हर्ष अपार ॥ नय देखूं नही मूरति, अन्नपान जावे नहीं रति ॥ १० ॥ एवी नक्ति वशें वीनती, कीधी देवपाल जिन मती ॥ ते सांगली मनमें गहगही, कोइक देवी प्रत्यक्ष थइ ॥ ११ ॥ ऋषभदेवनी शासन सुरी, ढुं | देवी हुं चक्केसरी ॥ ताहारी भक्ति सुखी में घी, हुं प्रत्यक्ष यश तुज जणी ॥ १२ ॥ वांबितवर | मुऊ पासे माग्य, जाग्यां हवे शुभ ताहारां जाग्य॥ हुं तुऊ तूठी पुं राज, सदुना वांबित करहुं काज ॥ १३ ॥ इह लौकिक फल वाल्हां होय, चाहे इह लौकिक सडु कोय || केटलेएक दिवसें तुज राज, वह होशे वधती तुम लाज ॥ १४ ॥ जावपूजा श्री जिनवर तणी, भक्ति जावें तें कीधी घणी ॥ खुशी श्रई हुं देखी भक्ति, राज्य लेहेशे तुं तेहनी शक्ति ॥ १५ ॥ एम कही देवी यर अदृश्य, वांबित फलशे मुऊ अवश्य || देवपाल मन हर्षित थयो, दुःख सघलोही हवे मुज गयो ॥ १६ ॥ प्रभुनें करी पंचांग प्रणाम, जाल तिलक रज कीधो ताम ॥ नोजन करवा ग्राव्यो घरे, जिनवर ध्यान दीयामां धरे ॥ १७ ॥ शेंठें आदर देश घणो दीधो परमान्नें पारणो ॥ तिरा अवसर ति नगर उद्यान, मुनि दमसार क्रिया सुप्रधान ॥ १० ॥ धरता मनमें निर्मल ध्यान, पाम्या निर्मल केवलज्ञान ॥ देव निकट वासी तिएण वार, श्राव्या महिमा करण अपार ॥ १७ ॥ कीधुं कंचन कमल विशाल, | नपरें बेठा काक कमाल || पूर्वाचल नपर जेम सृर; शोने तिम केवली सनूर ॥ २० ॥ सिंहरथ राजा वंदन जली, आाव्या ऋद्धि ले प्रापणी ॥ अंते नर परिजन परिवार, हियमे धरतो हर्ष अपार ।। | ॥ २१ ॥ पांचे अभिगम नृप साचवी, बेठो आागल वांदी स्तवी, द्ये उपदेश तदा केवली, कहे जिनहर्ष जाये दुःख टली ॥ २२ ॥ Jain Educa memational For Personal and Private Use Only www.jalnefilmy.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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