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Kalलोकी, धन धन मुनिवर लदेशे सुख परलोकीलाल ॥ के ॥ एहनां दर्शनथी लाल पाप पलाये,
एहना दर्शनथी समकित निर्मल थायेलाल ॥के॥१०॥इं चुकावे तो पण एह नहि केहन मूकाव्युं समकित पण नवि मूकेलाल ॥ के एहना गुण कहेतां लाल पार न लहिये, एहना गुण केता हश्मामां गह गहिये लाल ॥११॥ देवसन्नामें इणीपरे मुनिगुण गावे ॥ चरण नमे वारंवार सुहावे लाल के ॥ स्वामीना मुखथी सांजली तद्गुण खाणी ॥ विश्वानर सुरवर श्रदा न आणीलाल।कारशारूप करि सारथ पतिनुं तिहां आव्यो, सुंदर मंदिर कपटें ऋहिसवायोलाल कागोचरिए मुनिवर विचरंतां, हरिविक्रम र्या शोधंतांलाल के ॥१३॥ आव्या तेहने घरे मलपंता.
मांहे आव्या रे धर्मलान दियंता लाल ॥के ॥ कहे जिनहर्ष आदर बहु दीधो, आवो पधारो मुनिNIवर प्रणाम कीधोलाल ॥ के ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ सार्थपति मुनिने कहे, वाचा सुधा समान ॥ मूक प्रव्रज्या मुनिपति, क्लेशकरी दुखथान ॥१॥ नीरस दीक्षा आईती, कोइ नदि सेवाय ॥ परन्नव सुख नहि एहथी, वाधे फोक कषाय ॥२॥ ए मुज कन्या गुणवती, सुरकन्या अवतार ॥ ते परणावं तुजन्नणी, आपुं व्य अपार ॥३॥
पाणी ग्रहण करी रहो, दनं सुंदर आवास ॥नोगवि सुख संसारनां, पूरो निजमन आस ॥४॥ Nalए सामग्री नोगनी, लहियें पुण्यसंयोग । तेह मली ने तुजन्नणी, गेम दुखा कर योग ॥५॥
॥ ढाल एमी ॥ प्रथम ऐरावण दीगेरे न यगे अमिय पश्गे एदेशी॥ | नोगयकी किम विरतो रे, घर घर निदाने फिरतो रे ॥ एकठे काणे सुख निरतो रे, दुःख पामिश तुं एम करतुं रे ॥ १॥ कष्ट धणुं फल श्रोई रे, जैनतणुं मत जोड़ेंरे ॥ बौः धर्म सुखदायी रे, कष्ट
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