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वीशण
जाणनारने बहु मान आपq ते नावनक्ति कहेली ने ॥१॥वे व्यन्नाव प्रकारथी ए कीजें निर्व्याजे
परमन्नक्ति श्रुत ज्ञाननी ए तिम श्रुतधर काजे ॥ तीर्थकर ऐश्वर्य सही लहे मुक्ति संयोगें, रत्नचूम ॥१२॥ नरराय तणीपरें अविचल नोगे ॥ १३ ॥नरत क्षेत्र मांहे पुरीए तामलिप्त सोहे, सुंदर जिनमंदिर
करीए जननां मन मोहे ॥ नन्नत वंशाढ्य जीहां ए चरण व्यवहारी, सदमी मद श्रेय शोन्नताए । सहुना मनहारी ॥ १५ ॥राज करे राजा तिहां रत्नशेखर नामें, श्रीमंत कुवलय अति नलास देखीने पामे ॥ कर स्थिति पण मृतु जेहनी ए सहुने सुखदायी, अंधकार प्रतापे हणीयो ए नद्योत सदा ॥ १५ ॥ राणी तसु रत्नावली ए सोहे धनुष समनी, नमणी खमणी बहु गुणी ए शुध्वंश नपनी ॥ रत्नचूम नामें पुत्र ए नत्तम गुण जास, निजतेजें जिनहर्ष वंदीया खास ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ | वर्धमान अनुक्रमें लहे, जोवन जिम सहकार ॥ तनु सौरन्य गुणें करी, प्रणीत नूमी अपार॥१॥
पुत्र सुबुद्धि मंत्रिनो सुमति सुमति नंमार ॥ श्रीपुज सारथवाहनो, तथा मंदन सुतसार ॥२॥ alश्रीधर व्यवहारी तणो, अंगजगज इणे नाम || सहकारी गयापरे, रहे मित्र सुखठाम ॥३॥
सम संपद सौन्नाग्य गुण, अंगनोग शृंगार ॥ केहने विस्मय नवि करे, निजलीलाए चार ॥४॥ वनवाडी सरोवरविषे, केलि करे जिम हंस ॥ क्षण न रहे ते वेगलो, जिणपरे नखमें मंस ॥ Ral
॥ ढाल बीजी ॥ जीराना गीतनी देशी॥ | एक दिवस मिल गया रेनशान. नत्तम रे नत्तम रेनर चारे जाणासानलजो रे वात, सांभBaलजो पुण्यवंतनी वात, पाम्योरेपाम्योरे सुख संपति घणी ॥ सां ॥१॥ वनमां दीठा श्री सिंहसुर,
गाजे रे गाजे रेसीहतगीपरे ॥सां॥ोनपदेश रसाल विशाल, पुरी जननारे हश्मां ठरेसाणाशा
॥१३॥
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