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________________ स्थात्रा वीण रत्नप्रना कहे, लागुं ताहारे पाय ॥ जो ज्ञानी तुं खरो, तो मुज कंत बताय ॥ ३ ॥ कुब्ज कहें सहु देखतां, प्रगट करूं तुज कंत ॥ आणुं जिहां दुवे तिहां श्रकी, माहरी शक्ति अचिंत ॥ ४ ॥ ॥५ ॥ बांधी तिहां कणे पटकुटी, मांहे आसण श्राप ॥ जन प्रत्यय ऊपजाववा, करवा बेगे जाप ॥५॥ ढाल नवमी ॥ चतुरसनेही मोहना ॥ ए देशी ॥ धनधन कुब्ज कलानिलय, ए कोई अवतारी रे ॥ अचरज जोवे सहु मली, जोवे तीने नारी सारे ॥धन ॥ १॥ पलकवारमा पेखतां, प्रगट करयुं निजरूपरे॥रलीयायत नारी अइ, हरख्या सदु नर नूप रे ।। ध ।। २ ।। शेठ सागरदत्त हरखीयो, एहनुं पुण्यन्नंमारो रे ॥ निज मंदिर ले आवीयो, गौरवशुं तेणिवारो रे ॥धण॥३॥ सासु लीये नवारणां, ससरो करे वधाइ रे ॥ साली कीधां Naखूबणां, साला मलीया धाव रे ॥ध० ॥ ४ ॥ क्षमा कृपा मैत्री करी, शोने जिम मुनिरायो रे ॥isal वंदा, तिम वीरत्नशोनायो रे॥धणायाराजा रलीयायत अयो, कीधो तास पसायो रे ॥पुरमाहे मान्यो घणो, पुण्यें रिहि लहायो रे॥ध० ॥६॥ सुरनीपरें सुख नोगवे, तीन Salनारीशुं वीरो रे ॥ नगरमांहे जस विस्तरयो, निर्मल जिम गोखीरो रे ॥ध ॥ ७॥ आव्या तिहां अढारमा, अन्यदिवस अरनायो रे ।। श्रीसर्वज्ञ समवसरया, सह प्राणीना नाथो रे ॥ध ॥ GRE सुर असुरें सेवा करे, त्रिगमामांहे बिराजे रे ॥ तीन बत्र शिर नपरें, देवदंउन्नी वाजे रे ॥ धन Ranए ॥ बेठी बारह परषदा, वीरत्न निजनारी रे॥सागरदत्तशुं आवीया, त्रिकरण दोष निवारी रे॥ SU॥ १० ॥ सर्व नाषा अनुगामिनी, मीठी अमृत जेवी रे ॥ नगवन् धर्मदेशना, सानले हर देही ॥१॥ रेध ।। ११ ॥ चनगतिमाहं दोहिली, मनुष्य तणी गति जाणी रे ॥ ते पामी तिम कीजीयें, जेम नरक न जाये प्राणी रे ॥ध ॥ १३ ॥ सर्व सुखाकर जाणीयें, धर्म जगतमां सारो रे ॥ तेहनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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