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________________ वीश ॥णा **** ॥ तुं श्याने रे || स० ॥ २ ॥ कोमी वरस लगें तप तपे, पुण्य नपार्जित अन्य कोई रे ॥ अंतर मुहूरत मांहे ते, निवें मुनिने फल होइ रे ॥ स० ॥ ३ ॥ तो पण दवमां राजवी, शुद्ध समकित पूर्वक धारो ||रे || देशथकी श्रावक तणां, द्वादश व्रत चिंतें विचारो रे ॥ स० ॥ ४ ॥ सम्यगदृष्टिनुं करयुं, थोडहीं तप सुप्रमाणो रे ॥ श्राये तेहथी निर्जरा, कर्माष्ट ती होये हालो रे स० ॥ ५ ॥ सम कितशुं धर्म आदरी, राजा केवलीनें वंदी रे ॥ निज परिवारे परवरयो, आव्यो मंदिरें आनंदी रे स० ॥ ६ ॥ राजा मनमां चिंतवे, संवेग रखें पूरालो रे ॥ कोनें आएं साहेबी, कोइ राज तो नहीं रालो स० ॥ ७ ॥ स्तोक प्रावखुं माहरूं, ए राजधुरा कोण धारे रे ॥ पुत्र नहीं कोई माहरे, राजा इम चित्त विचारे रे ॥ स० ॥ ८ ॥ इम चिंता करतां थकां राज्याधिष्ठायिक देवी रे || प्रत्यक्ष आकाशें रही, पंच दिव्य नृप प्रगट करेवी रे ॥ स० ॥ ए ॥ पंच मिली द्ये जेहनें, तेहनें कन्या परगावी रे ॥ राज्य देजे तुं तेहनें, देवी गइ एम बतावी रे ॥ स० ॥ १० ॥ सचिवादिक नृपें तिम करयो, देवपाल जलि दियो राजो रे || श्री जिनपूज प्रन्नावथी, सीधां मनवांबित काजो रे ॥ स० ॥ ११ ॥ परगावी नृपें दीकरी, मनोरमा मोहनगारी रे ॥ केवली कन्हे महोत्सवें, संयम लीधो सुविचारी रे। स॥१२॥ चारित्र बेदिननुं सूधुं, पाब्यं ते निरतिचारो रे । पहेले देवलोकें सुर थयो, सिंहरथ राजा अणगारो | रे ॥ स० ॥ १३ ॥ एक दिवसनी पण जली, तपस्या समता नियोगें रे || पूर्व कोमी सेव्याथकी, क्युं नहीं समता संयोगें रे ॥ स० ॥ १४ ॥ निर्मोही एक दिन तयुं, समतायें चारित्र पाले रे ॥ मोक्ष न पामे जो कदा, तो पण सुरनव न निहावे रे ॥ स० ॥ १५ ॥ यतः ॥ प्रतिद्वंति क्षणार्थेन, साम्यमालंब्य कर्म तत् ॥ यन्न हन्यान्नरस्तीव्र, तपसा जन्मकोटिनिः ॥ १६ ॥ अर्थ - जे कर्मने करोमो जन्म पर्यंत | करेलां तपथी पुरुष मटामी शक्तो नथी ते कर्मने मात्र मननासाम्यनुं आलंबन करीने अर्घाकानी CODDDDDDDDDDDDDDDI Jain Education International For Personal and Private Use Only >>>>>>>DDDDD स्थान‍ आण www.janbrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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