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षित धर्म न ॥ सामग्री पण दोहिली न ॥ तजवो मिथ्या नर्म न ॥ ११॥ आवखं सोम salवरसनुन ॥ अर्ध्व रात्रिमा जाय न०॥ तदर्घ बाल युवानमें न ॥ जरा व्याधि दुःखमांहि ॥ ar ॥१२॥ निष्फल जाये आव न ॥ धर्म विना इण रीत न० ॥ पण प्राणी जाणे नही ॥ मान॥ मोह मगन मदप्रीत न॥ १३॥ एक जनम सुख कारणे न ॥ नरकायुष कल्पांतन
तो किम पातक कीजीयें न ॥नय गंमी निचांत न ॥ १४ ॥ पातकनां फल पामूआ न॥ जनम मरण दुख होय न ॥ नमे घणो संसारमें न ॥ शरण न पाये कोय न॥ १५॥ शरपुं एक जिनधर्मनुं न॥ महोटो एह महंत न॥ जेहथी दुर्गति नवि पमेन॥ पामे सुख्ख
अनंत न ॥१६॥ धर्म करो जेम निस्तरोन ॥ कहियुं केवली एम न० ॥ धरम करो जिनहर्षशुं Sar ॥ जिम पामो सुख खेम न ॥१७॥ सर्वगाथा ॥ २० ॥
दोहा॥ Sal सानली एहवी देशना, प्रतिबूझ्यो नरराय ॥ पूरे नगवन् माहरूं, केटलुंएक ने आय ॥msal Valकहे ताम मुनि केवली, तुज आयुष दिन तीन ॥ एहवं वचन सुणी करी, नूप श्रयो मनखीन॥२॥
पश्चात्ताप करे इश्यो, में सेव्या विषय सवाद ॥ मातोपद ऐश्वर्यमां, रातो घणे प्रमाद ॥३॥ सुकृतमें
कीधां नहीं, परन्नव सुखने काज ॥ वृथा जनम में हारियां, कीधां पाप अकाज ॥४॥ जिनमूरति । Salप्रासाद जिन, करया न पूज्या साध ॥ दुस्तप तप न समाचरयां, खोयो जन्म अगाध ॥५॥
ढाल नवमी ॥शील कहे जग हुँ वमो॥ ए देशी॥ सहु साखें राजा करे, पळतावो निजमन मांहेरे ॥ मंदिर लागो बारणे, शं कारीजें हवे सारे॥ सहु॥१॥ मुनिवर ये आशासना, मधुर। वाणी राजाने रे। तीन दिवस तो घणा, परतावोक
दिवस तो घणा, पळतावो करे!
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