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________________ स्थान. वीण ॥दोहा॥ पनरमा स्थानकविषे, नक्ति राग बहु मान ॥ दान सुपात्रे आपq, सर्व श्रेय निदान॥१॥दान मूल ॥ ६॥ सदु धर्मनु, महिमाकेळं स्थान ॥ दान बीज कीर्त्तितगुं, बदमी, फल दान ॥॥ पदवि स्वर्ग अपवगनी, नहि दोहिली तास॥शालिन्नश्नीपरे दिए, पात्रं दान नलास ॥३॥पात्र तिहां नांख्यां इसां, व्य भावथी दोय॥हृदयविचारी झानसूं ,तत्वजाग जे होय॥धारत्नकनकरूपातणां, व्यवहारीनां पात्र॥सर्वे तिम नत्तम हुवे,यपात्र शुनगात्र॥॥धातुपात्रताम्रादिना,मध्यमपात्रकहाय॥वलीलोहादिकधातुना, घर घर जघन्य लहाय ॥६॥ मृन्मय आदिक पात्र जे, अन्य गृहिनां जाण।कुपात्र पात्ररूचे दुवे, व्याप्ति झान प्रमाण॥॥नावपात्र एहज कह्यां, श्रीजिनशासन मांय॥ विधिसूं दीजे तेविषे, अनंतगणुं फल जायाख्यात चारित्रधर. कीरा मोह गुणवंतरत्नपात्र समपात्रते. सर्वोत्तम कहो तंतपणा सम्यग्ज्ञान क्रियासहित, लानालान समान ॥ मन प्रशांत अणगार ते, सुवर्णपात्र अनुमान San १० ॥ सम्यग्दर्शन शुन्नमन, हादशव्रतना धार॥रजत पात्र सरिखा कह्या, सर्व गृही सुविसार Sen ११ ॥ चोथे गुणगणे जिके, वर ते शुइ सदैव, ते श्रेणीक परे कद्या, ताम्र पात्रसम balजीव ॥१२॥ मिथ्यादृष्टि लोक सहु, मदादिपात्रसम नक्त ॥ मार्ग अनुसारी मार्गना, किणश्क गुण संयुक्त ॥ १३ ॥ पंचास्रव आसक्त नित, अनृत मद नन्मत्त ॥ तत्वमार्ग पराङ्मुख, कह्या अपात्र प्रमत्त ॥ १४ ॥ नूख पिपासा पीडिया, दुखियाने वलि दीण ॥ दया आणि तेहने दिए, यथाशक्ति सप्रवीण ॥१५॥ नत्तमपात्र साधु कया, श्रावक मऊम पात्र ॥ सम्यग् दृष्टि अवती, जहन पात्र सुण मित्त ॥१६॥ सहस्र मिथ्यादृष्टि थकी; अव्रती कहे एक ॥ अनुव्रत्ति एक सहस्रथी,महाव्रती वर एक ॥ १७ ॥ महाव्रती एक सहस्रथी, अधिक एक जिन होय ॥ पात्र जिनेश्वर सारिखो, ॥ ६॥ MHormational For Personal and Private Use Only wintainthiarary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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