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स्थान
पाणी आहार ॥॥॥ बार कोमी सोवन तणी, वृष्टि श्रश् ततकाल ॥ देव संबंध व्यसुं, यो धनवंत विशाल॥सुणा॥ते दानार्जित पुण्यश्री, ब्रह्मलोके अवतार ॥पामी सुरनी संपदा, नावे कहेतापार सु॥६॥चवी करी सूरलोकथी, वीरत्न अयो एह ॥ पामी एहवी संपदा, पुण्यतणो नहि बेह ॥ ॥ ७ ॥ श्रज्ञा आणीने दिए, अल्प सुपात्रे दान ॥ तोपण अद्भुत फल दुवे, नांखे एम नगवान् ॥ सु॥ ॥ पुण्यानुबंधी पुण्यश्री, लहीएं सुख अपार ॥ सुरसूख बहु रुहि पामीएं, शिवसुख अवधी विचार ॥॥धर्मश्रद्वाऐ साधीएं, बहु धने धर्म नहोय॥साधु निकंचन श्रध्या, सुरपुर जातां जोय॥ सु ॥१॥सह धन श्रद्धा विना, जे आपे नर कोय ॥ जेम तुष वाव्यानी परें, ते सहु निष्फल होय॥ सु॥११॥परदुख नपजावे नहीं, धरे नहीं खल नाव ॥ सज्जन मारग अनुसरे, अल्प बहुफल पाव।। सु॥१॥ पूर्वनव निज सनिली, वीरन तिणीवार ॥ नमस्करी जिनने कहे, वीनतमी अवधार॥
सु ॥ १३॥नोगतणुं फल माहरे, हवे जीवीश केटलो काल ॥ कृपा करी मुजने कहो, गे स्वामि Salदीनदयाल सु॥ १४ ॥ दान दीयुं तें जिनन्नणी, तास पुण्य संयोग॥वरस तीनसें तुं हजी, अनुपम मनोगवसे नोग ॥ सु ॥ १५॥ नोगतणा फलनो सही, ज्यारे थाशे अंतात्यारे चारित्र आवशे, तुज Salपोतें गुणवंत॥ सु ॥ १६ ॥जिनन्नाषित एहवं सुणी, वीरत्न प्रनु पाय॥प्रणमी निजघर आवीयो,
ससरासुं तन नाय ॥ सु॥ १७ ॥ केटलाएक दिन सासरे, नव नव नोग विलास ॥नोगवतो
सुखसुं रहे, पुष्य पूगे पास ॥ सु० ॥ १७ ॥नक्ति करे अरिहंतनी, साहमीवत्सल सार ॥ नृप Salजिनहर्ष मिली करी, सागर अनुमतिधार ॥ सु० ॥ १५॥ सर्वगाथा ॥
॥दोहा॥ वीरन्नद्र तीहांधी चल्यो, धरतो हर्ष अपार ॥ त्रण कलत्र साथे करी, रुहि तणे विस्तार ॥१
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