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________________ वेद न दे ॥ते पण पहोती तेणे गमें, या मित्रपणे सुखपामे ॥ २२॥ तिहांथी नृप चवी सुसने, नपजशे महाविदेहें। तीर्थंकर पदवी लदेशे, राणी जीव गणधर थाशे ॥ २३ ॥ श्म प्रथम थानक आराधे, विधिशुं ते शिवपद साधे ॥ सुख पामे तेह अनंता, श्म कहे जिनवर गुणSrilवंता ॥ २५॥ पहेलो थयो ए अधिकार, तेरे ढालें सुविचार ॥ गाथा तीनसे चालीश, वांचो मनsalधरीय जगीश ॥ २५ ॥ श्रीदेवपाल क्षितिपाल, कीधी जिनन्नक्ति विशाल ॥ जिनहर्ष सुणीवृत्तांत, सेवो थानक गुणवंत ॥ २५ ॥ इतिश्री विंशतिस्थाने प्रथम स्थानकं समाप्तम् ॥ सर्वगाथा ॥३५॥sa अथ धितीय श्रीसिपद स्थानक प्रारंनः ॥ ॥दोहा॥ Sal सकलकर्मना क्लेशथी, मूकाणा महानाग ॥ चिदानंद पद शाश्वता, लागे को न दाग ॥१॥ salलोक अग्र दे रह्या, लही अनंती ऋद्धि॥जस्म किया बाली करम, परम आतमा सिद्धिाशयतः पध्मातं सितं येन पुराणकर्म, यो वा गतो निर्वृति सौधमूर्ध्नि ॥ ख्यातोऽनुशस्तो परिनिष्ठितार्थो, यः सोस्तु सिद्धः कृतमंगलो मे ॥ १॥ अर्थः-जेणे पुरातन कर्मनुं ध्यान करेलुं अथवा जेणे प्राचीन alशुक्ल कर्म ध्यानधारा दीपकरेलुंजे अने जे परमनिर्वृति एटले मुक्तिरूप महेलना शिखरपर गयेलो तेमज जे विख्यात अनुशासन रुप ने तथा जेमणे पूर्णज्ञान युक्त अर्थ जाणेलो तेवो सिवर्ग, मने मंगल कर्ता थाओ ॥२॥ दोहा ॥ करवो समरण ध्यानसुं, प्रतिमा वंदन तास ॥ नाम जाप पूरण नमण, करीयं धरी नल्लास ॥ ३ ॥ अवर्णवाद आशातना, वर्जी नर सुविवेक ॥ Jain Education national For Personal and Private Use Only wwwdeittery.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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