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________________ वश 119011 XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXADO ॥ ढालपी ॥ इलिपरे कंबल कोइ न लेशे ॥ एदेशी ॥ विनय करी गुरु संतोषे जावे, तेहथी अनुपम ज्ञान लहावे ॥ तेहथी निर्मल समकित आवे, तेहथी चारित्र परम सुहावे ॥ १ ॥ तेहथी संवर तेथी तपस्या, तेहथी निर्जर थाय अवश्या | तेही अष्ट करम दय थाये, तेहथी केवल ज्ञान लहावे ॥ २ ॥ मुक्ति श्री संगम हुवे तेहथी ॥ सुख अनंत लहे वलि जेही ॥ विनयमूल कारण सदु सुखनों, टालण जन्ममरण जवदुखनो ॥ ॥३॥ बासव भेद विनयना जेह, मैन वंच कोय चौद कहेह ॥ ननो थोये तेहने देखि, आव्या साहमो जॉय विशेषि ॥४॥ अंजलि जोकि शीर्ष नमावे, पोते प्रासन मांगे जावे, आसन अनिग्रह नक्तें वंदे ॥ |पर्युपासना करि आनंदे ॥ ५ ॥ जातां सार्थ श्रइ बहुलावे, कायिक प्रष्टंघा विनय कहावे ॥ वचन चतुर्धा पथ्येसुं तोले, मृदु टप ॉलोची बोले । सदसत् मनवृत्ति हुंती, मननो विनय द्विधा धरि खंति ॥ संघकुल गएण गणि धर्म वखाणुं ॥ पंच परमेष्टि पद ए जां ॥ ७ ॥ ज्ञॉन क्रियों स्थविराज्ञा वलि, आशतना ए दशनी टालि || स्तुति सन्मान नक्ति बहु करियें, तेरह चार गुण प्रादरियें ॥ ८ ॥ प्रथम चौद बावन जेजे, वे मेल्यां बासठ गुण लीजे ॥ निरतिचारें मुनि ते करतो ॥ अरिहंत पदवी लहे आचरतो || || सांजलि एहवी गुरुनी वाली || महामुनीश्वर यति गुणखाणी ॥ एहवो अभिग्रह धनमुनि लीधो, श्रीगुरु केरे वचनें वींध्यो ॥ १० ॥ मन वचन कायाए करवो, विनय | परमेष्ट्यादिकनो धरवो ॥ वली विशेषे गुरुपदकेरो, परमकल्याण करण अधिके ॥ ११ ॥ चारज एम करे प्रशंसा, धन्य धन मुनीश्वर अवतंसा ॥ विनयकरण तत्पर गुणधारी, सफल जनम करवा सुविचारी ॥ १२ ॥ बाह्यतपें तनु क्लेश पमाने, युग कोटी जम जन्म गमाये || मुक्ति नपाय विनय नवि जाणे, ते जिनहर्ष सहित अनाणे ॥ १३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० 113011 www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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