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________________ वीश ॥४१॥ COPPEDODO सुगुरुजी आपे धर्मोपदेश, सांजले लोक नरेश ॥ सु० ॥ ए आंकणी ॥ मत्तयश्व कुंजरवराजी, राज्य तथा सुख जोग ॥ रमणी गयगमणी जलीजी, गमता सुत संयोग ॥ सु० ॥ २ ॥ कानें कुंरुल रयणनांजी, घरणे नूषित अंग ॥ धर्मतणां फल ए सहुजी, दिनदिन नवला रंग ॥ सु० ॥ ३ ॥ धर्मथकी धन संपजेजी, धर्मै लील विलास ॥ धर्मे काया निर्मलीजी, धर्मे पूगे आस ॥ सु० ॥ ४ ॥ धर्मे मंदिर मालियांजी, धर्मे गोख आवास ॥ धर्मे बंधव मन समाजी, धर्मै सहु जगदास || सु० ॥ ॥ ५ ॥ जेही सहु सुख पामियेंजी, राखे तेहशुं प्रीति ॥ तेह कृतज्ञ शिरोमणीजी, तेहनी नत्तम रीति ॥ सु० ॥ ६ ॥ धर्म करे जिनवरतणोजी, मनमें धरिय नष्ठांहि ॥ तेहनगी साहाज्य करेंजी, ते मोटा जगमांहि ॥ सु० ॥ ७ ॥ धर्म करे ते नरमणीजी, मूढ करे अंतराय ॥ द्वेष वहे ते नृपरेंजी, ते दुख जाजन थाय ॥ सु ॥ ८ ॥ धर्म करे करतां जणीजी, जेह करे नजमाल ॥ ते पामे सुख संपदाजी, जोगोपभोग विशाल ॥ सु० ॥ ए ॥ स्वछ कलेवर ज्यां लगेंजी, जां इंप्रिय नही हीएए ॥ जरा वेगली ज्यां लगेंजी, ज्यां लगेंगे प्रयु न खीएए ॥ सु० ॥ १० ॥ व्याधि वधी नहीं अंगमैजी, धर्म यतन करो ताम ॥ घरलागुं कून खणोजी, ते उद्यम किा काम ॥ सु० ॥ ११ ॥ वाणी गुरुनी सांजलीजी, मीठी अमृत प्राय ॥ जयंतकुमर राज्यें या पियोजी, उत्सव पूर्वक राय ॥ सु० ॥ ॥ १२ ॥ महेंपाल नृप मंत्रीशुंजी, गुरु चरणे प्रवेय ॥ चित्तचोखे चारित्र ग्रहयुंजी, मुक्तिपंथ पाथेय ॥ सु० ॥ १३ ॥ राज्य ऋषीश्वर गुरु कन्हेंजी, नलियां अंग इग्यार ॥ गीतारथ जाण्या सहुजी, निश्वयनय व्यवहार ॥ सु० ॥ १४ ॥ गमांहे मुनिवर घणाजी, तपसी | बहुश्रुतवंत ॥ धर्मोत्सुकराजेश्वरुजी, दया विनय विलसंत ॥ सु० ॥ १५ ॥ महेंद्रपाल ऋषि अन्यदाजी, देशना देता सार || विधिशुं वीश थानक तलोजी, गुरुमुखें सुल्यो विचार ॥ सु० ॥ १६ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International स्थानण् ॥४१॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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