Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिक
से वोले गये, और मनसे चीते गये अर्थको यदि कोई जीव मनमें विचार ले तो ऋजुमति मन:पर्यय उस मनमें चिंते गये पदार्थका ईहामतिज्ञानपूर्वक विकलप्रत्यक्ष कर लेता है । सरल और किया गयापन, इन दोनों अर्थोको घटितकर मन, वचन, काय, की अपेक्षासे ऋजुपातिके तीन भेद हो जाते हैं । जो कि मनमें चीते गये, ऋजुकायकृत अर्थको जाननेषाळा, मनमें चीते गये ऋजुवाक्कृत अर्थको जाननेवाला और मनमें चीते गये ऋजुमनस्कृत अर्थको जाननेवाला ये तीन भेद हैं । अनिर्वर्तितकायादिकृतार्थस्य च वेदिका ।
विपुला कुटिला षोढा वक्रर्जुत्रयगोचरा ॥ ३ ॥
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तथा काय, वचन, मन, इनसे किये गये परकीय मनोगत विज्ञानसे नहीं बनाई गई होकर सरल या कुटिल अथवा बहुतसे शरीर आदि कृत अर्थोको जाननेवाली मतितोला है । वह वक्र और सरलस्वरूपसे मन, वचन, काय, इन तीनों के द्वारा किये गये मनोगत विषयोंको जानती हुयी वह छह प्रकारकी है ।
एतयोर्मतिशद्वेन वृत्तिरन्यपदार्थिका ।
कैश्चिदुक्ता स चान्योऽयों मनःपर्यय इत्यन् ॥ ४ ॥ द्वित्वप्रसंगतस्तत्र प्रवक्तुं धीधनो जनः ।
न मनः पर्ययो युक्तो मन:पर्यय इत्यलम् ॥ ५ ॥
इन ऋजु और त्रिल शब्दों की मति शब्द के साथ की गई अन्य पदार्थको प्रधान कहनेवाली
अन्यपदार्थ तो मन:पर्ययज्ञान
जिस मन:पर्यय ज्ञानकी मति
बहुब्रीहि समास नामक वृत्ति किन्हीं विद्वानोंने कहीं है । और वह पडता है । अर्थात् - जिस मन:पर्यय ज्ञानकी मति ऋजु है और विपुला है, वह ऋजुमति विलपति मन:पर्यय हैं, यों विग्रह किया गया है । आचार्य सिद्धान्त करते हैं कि इस प्रकार उन विद्वानोंका कहना प्रशंसनीय नहीं है । क्योंकि यों वृत्ति करनेपर वहां मन:पर्यय शब्द में द्विवचन हो जानेका प्रसंग होगा। जैसे कि जिस पुरुषका धन बुद्धि है, वह बुद्धिधनो जनः 66 या बीधनः " है । यहां उद्देश्य दलके अनुसार जन शब्द एकवचन है । अतः अन्य पदार्थ हो रहे, मन:पर्यय ज्ञानके साथ वृत्ति करनेपर विधेयदलमे " मनःपर्ययः "
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इस प्रकार एकवचन कहना युक्त नहीं पडेगा । किन्तु " मन:पर्ययौ " यह कहना उस वृत्तिद्वारा अर्थ करने में समर्थ होगा । क्योंकि दो मन:पर्यय ज्ञानोंकी ऋजुमति और विपूलमति दो मतियां हैं ।
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यदात्वन्य पदार्थों स्तस्तद्विशेषौ बलाद्वतौ ।
सामान्यतस्तदेकोऽयमिति युक्तं तथा वचः ॥ ६ ॥