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मार्गानुसारी.
(३) वेष या खरचा न करना ताके भविष्य में समाधि रहै। आवादानी माफीक खरचा रखना।
(६) कीसीका भी अवगुनबाद न बोलना नो अवगुनबाला हो तो उन्हीकि संगत न करना तारीफ भी न करना परन्तु अवगुण बोलके अपनि आत्माको मलीन न करे।
(७) जिस मकानके आसपासमें अच्छे लोगोंका मकान हो और दरवाजे अपने कब्जे मेंहो, मन्दिर, उपासरा या साधर्मों भाइयों नजीक हो एसे मकानमें निवास करना चाहिये। ताके सुखसे धर्मसाधन करसके।
(८) धर्म, निति, आचारवन्त और अच्छी सलाहके देनेवालांकी संगत करना चाहिये तांक चित्तमे हमेशां समाधी और बनी रहै।
(९) मातापिता तथा वृद्ध सजनोंकि सेवाभक्ति विनय करना, तथा कोइ आपसे छोटा भी होतो उनका भी आदर करना सबसे मधुर वचनोंसे बोलना।
(१०) उपद्रववाले देश, ग्राम या मकान हो उनका परित्याग करना चाहिये। रोग, मरकी, दुष्काल आदिसे तकलीफ हो एसे देशमें नही रहेना।
(११) लोक निंदने योग्य कार्य न करना और अपने श्री पुत्र और नोकरोंको पहलेसे ही अपने कब्जे में रखना अच्छा आचार व्यवहार सीखाना।
(१२ ) जैसी अपनी स्थिति हो या पेदास हो इसी माफिक खरचा रखना शिरपर करजा करके संसार या धर्मकार्य में नामून हांसल करने के इरादेसे बेभान होके खरचा न कर देना, खरचा करनेके पहिले अपनी हासयत देखना। .