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(६८) शीघ्रबोध भाग १ लो. शरीर, मान ३२ पासलीयों यावत् वर्ण गन्ध रस स्पर्श संहनन संस्थानादिके पर्यव अनंते अनंते हानि होने लगे. धरती की सरसाइ गुल जेसी रही.
तीसरा आरा उतर के चोथा आरा लगा वह ४२००० वर्ष कम, एक कोडाकोड सागरोपमका है जिस्मे कर्मभूमि मनुष्य जघन्य अन्तर महुर्त, उत्कृष्ट क्रोड पूर्वका आयुष्य जघन्य अंगुल के असंख्य भाग उत्कृष्ट पांचसो धनुष्य कि अवगाहना थी शरीर के पांसलीयों ३२थी संहनन छे, संस्थान छे था. जमीनकी सरसाइथी स्निग्ध संयुक्त मनुष्यों के प्रतिदिन आहार करने कि इच्छा उत्पन्न होती थी भगवान ऋषभदेव और भरतचक्रवत्ति यह दो शीलाके पुरुष तो तीसरे आरा के अन्तमें हुवे और शेष २३ तीर्थकर, ११ चक्रवति ९ बलदेव, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव यह सब चोया आरामें हुवे थे।
भगवान ऋषभदेव के पाटोनपाट असंख्यात जीव मोक्ष गये तत्पश्चात् अजितनाथ भगवान का शासन प्रवृत्तमान हुवा क्रमशः नौवो मुविधिनाथ भगवान तक अविच्छिन्न शासन चला फीर हुन्डा सर्पिणी के प्रयोगसे शाशन उच्छेद हुवा फीर शीतलनाथ भगवान से शासन चला एवं श्री धर्मनाथजी के शासन तक अंतरे अंतरे धर्म विच्छेद हुवा बाद में श्री शान्तिनाथ प्रभु अवतार लीया वहांसे श्री पार्श्वनाथ प्रभु तक अवच्छिन्न शासन चला बाद में चोथा आराके ७५ वर्ष आढा आठ मास बाकी रहा.। पाठ कोतव दशवा स्वर्ग से चवके क्षत्रीकुंड नगर के सिद्धार्थ राजा कि त्रिसलादे राणी के रत्नकुक्षमें श्री वीर भगवान् अवतार धारण कीया माता को १४ स्वप्ना यावत् भगवान का जन्म हुवा ६४ इन्द्र मील के भगवान का जन्म महोत्सव कीया बाद में राजा