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शीघ्रबोध भाग ४ था.
मल मात्र करे नही, आहार पाणीके अभाव परठे नही; अपवाद मार्गमें निर्वद्य भूमिपर विधिपूर्वक परठे।
(१) इर्यासमितिका च्यार भेद है-आलम्बन, काल, मार्ग, यत्ना. जिस्मे आलम्बन-ज्ञान, दर्शन, चारित्र. काल-अहोरात्री. मार्ग-कुमाग त्याग ओर सुमार्ग प्रवृत्ति. यत्नाका च्यार भेद हैद्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, द्रव्यसे इर्यासमिति-छे कायाके जीबोंकि यत्ना करते हुवे गमन करे.क्षेत्रसे-च्यार हाथ परिमाण भूमि देखके गमनागमन करे. कालसे दिनकों देखके रात्री में पूंजके चाले. भावसे-गमनागमन करते हुवे वाचना, पुच्छना, परावर्तना, अ. नपेक्षा, धर्मकथा न कहे. शब्द, रूप, गन्ध, रस, स्पर्शपर उपयोग न रखते हुवे इर्यासमिति पर ही उपयोग रखे।
(२) भाषासमिति के च्यार भेद-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव. द्रव्यसे-कर्कशकारी, कठोरकारी, छेदकारी, भेदकारी, मर्मकारी, सावध पापकारी, मृषावाद ओर निश्चयकारी भाषा न वोले. क्षेत्र से-गमनागमन करते समय रहस्तेमे न बोले. कालसे-एक पहर रात्री जाने के बाद सूर्योदय हो वहांतक उच्चस्वरसे नही बोले. भावसे-राग द्वेष संयुक्त भाषा नही बोले।
(३) एषणासमितिके च्यार भेद--द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव. द्रव्यसे मुनि निर्दोष आहार, पाणी, वस्त्र, पात्र, मकानादिको ग्रहन करे; कारण निर्दोष अशनादि भोगवनेसे चित्तवृत्ति निर्मल रहती है, इसवास्ते फासुक आहार देनेवाले और लेनेवाले दुष्कर बतलाये ह और विगर कारण दोषित आहारादि देनेवाले या लेनेवाले दोनोंको शास्त्रकारोंने चोर बतलाये हैं श्री स्थानांगतूत्र स्थाने ३जे तथा भगवतीसूत्र शतक ५ उ०४ में दोषित आहार देनेसे स्वल्प आयुष्य तथा अशुभ दीर्घायुष्य बन्धते है और भगवतीसूत्र शतक १ उ० ९ में आधाकर्मी आहार करनेवालोंको