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कर्मोदयाधिकार. (३२३) कि प्रत्याल्यानी चौक ४ त्रियंचानुपूर्वी ५ मनुष्यानुपूर्वी ६ नरक गति ७ नरकायुष्य ८ नरकानुपूर्षी ९ देवगति १० देवायुमक ११ देवानुपूर्वी १२ वैक्रिय शरीर १३ वैक्रिय अंगोपांग १४ दुर्भाग्य १५ अनादेय १६ अयश १७ इन सतरे प्रकतिया का उदय नहीं होता.
(६) प्रमात्त संयतगुण में प्रत्याख्यानी चौक ४ प्रियंचमति ५ प्रियंचायुष्य ६ निचगात्र ७ एवं आठ का उदय विच्छेद होने से शेष ७९ प्रकृति रही. आहारक शरीर १ आहारक अंगोपांग २ इन दो प्रकृतिका उदय विशेष होय इस वास्ते ८१ प्रकृतिका उदय होय.
(७) अप्रमत्त संयत गुण में. थीणद्धी त्रिक ३ आहारक द्विक ५ इन पांचका उदय न होय. शेष ७६ प्रकृति का उदय होय.
(८) निवृति बादर गुण में सम्यक्त्व मोहनीय १ अर्द्ध नाराच सं० २ कीलिका सं० ३ छेवटु सं० ४ इन चार को छोडकर शेष ७२ प्रकृति का उदय होय.
(९) अनिवृति बादर गु० में हास्य १ रति २ अरति ३ शोक ४ जुगुप्सा ५ भय ६ इनका उदय विच्छेद होने से शेष ६६ प्रकृति का उदय होय.
(१०) सूक्ष्म संपराय गुण में पुरुषवेद १ स्त्रीवेद २ नपुंसक वेद ३ संज्वलना क्रोध ४ मान ५ माया ६ इन छः का उदय वि. छछेद होने से बाकी ६० प्रकृति का उदय होय.
(११) उपशांत मोह गुण में संज्वलन लोभ का उदय विच्छेद हो बाकी ५९ का दय हो. - (१२) क्षीण मोह गुणों के दो भाग है पहिले भाग में ऋषभ नाराच और नाराच संघयण तथा दूसरे भाग में निद्रा