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संचिठ्ठणकाल.
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और जिन जीवों को छोडकर गया था वे सब जीब वहीं मिले एक भी कम ज्यादा नहीं उसको असून्यकाल कहते हैं और कई जीव पहिलेके और कई जीव नये उत्पन्न हुवे मिलें तो उसको मिश्रकाल कहते है । तीर्यचमे सचिट्ठनकाल दो प्रकारका है असम्यकाल और मिश्रकाल, मनुष्य और देवताओं में तीनों प्रकारका नारकीवत् समझ लेना ।
अल्पाबहुत्व नारकी में सबसे थोडा असून्यकाल उनसे मिश्रकाल अनंतगुणा और सून्यकाल उनसे अनंतगुण एवम् मनुष्य देवता, तीयैच में सबसे थोडा असून्यकाल उनसे मिश्रकाल अनंतगुणा.
चार प्रकार के सचिट्ठणकाल में कौनसी गतिका भव ज्यादा कमती किया जिसका अल्पाबहुत्व सबसे थोडा मनुष्य सचिट्ठणः काल उनसे नारकी सचिट्ठणकाल असंख्यातगुणा उनसे देवता चिठ्ठणकाल असंख्यातगुण और उनसे तीर्थंच सचिठ्ठणकाल अनंतगुणा ।
तात्पर्य भूतकाल में जीवो ने चतुर्गति भ्रमण किया उसका frera जीवों के हित के लिये परम दयालु परमात्मा ने कैसा समझाया है कि जो हमेशां ध्यान में रखने लायक है देखो, अनंत भव तीयैचके असंख्याते भष देवताओं के और असंख्याते भव नारकी के करने पर एक भव मनुष्यका मिला. ऐसे दुर्लभ और कठिनतासे मिले हुए मनुष्य भवकों हे ! भव्यात्माओं ! प्रमादवश बूबा मत खोओ जहां तक हो सके वहांतक जागृत होकर ऐसे काय में तत्पर हो कि जिससे चतुर्गति भ्रमण टले. इत्यलम्
सेवं भते सेवं भंते तमेत्र मच्चम्