Book Title: Shighra Bodh Part 01 To 05
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 417
________________ लेश्याधिकार. (३७१) छठा, आठवा, ये तीन उसे इस दूसरे उद्देसे के सहश है. शेष ३-५-७-९-१०-११ ये छओ उद्देसा प्रथमोद्देशावत् समझ लेनाइति श्री भगवती सूत्र शतक ३० उद्देसा ११ समाप्त. सेवं भंते सेवं भंते समेव सच्चम् । . - REथोकडा नं०६१ श्री उत्तराध्ययन सूत्र अ० ३४ (छ, लेश्या.) लेश्या उसे कहते है जो जीव के अच्छे या खराब अध्यवसाय से कर्मदलद्वारा जीव लेशावै. यह इस थोकडेद्वारा ११ बोलो सहित विस्तारपूर्वक कहेंगे यथा १ नाम २ वर्ण ३ गंध ४ रस ५ स्पर्श ६ परिणाम ७ लक्षण ८ स्थान ९ स्थिति १० गति ११ च्यवन इति । (१) नामद्वार-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या ते. जोलेश्या, पन्नलेश्या, शुक्ललेश्या, (२) वर्णद्वार कृष्णलेश्याका श्यामवर्ण, जैसे पानी से भरा हुआ बादल, भैसा का सींग, अरीठा, गाडेका खंजन, काजल, आंखों की टीकी, इत्यादि ऐसा वर्ण कृष्णलेश्या का समझना नीललेश्या-नीलावर्ण, जैसे अशोक पत्र, शुक की पांखे, वैडूर्यरत्न इत्यादिवत् समझना कापोतलेश्या-सु/ लिये हए कालारंगजैसे अलसी का पुष्प, कोयल की पांख, पारेवाकी ग्रीवा, इत्या.

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