________________
( ३३६)
शीघ्रबोध भाग ५ वां.
थोकड़ा नं० ४६
. ( सूत्र श्री पन्नवणाजी पद २४ )
( बांध तो बांधे ) मूल कर्म प्रकृति आठ है यथा ज्ञानावर्णीय, दर्शनावर्णीय, घेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम कर्म, गोत्र कर्म अन्तराय कर्म ॥
वेदनीय कर्मका बंध प्रथम से तेरहवा गुणस्थान तक है । ज्ञनावर्णीय, दर्शना; नामकर्म, गोत्र, और अन्तराय ए पांच काँका बंध प्रथम से दशवां गुणस्थान तक है ॥ मोहनीय कर्मका बंध प्रथम से नवमा गुणस्थान तक है ॥ आयुष्य कर्मका बंध प्रथम से सातमा गुणस्थान तक है ।
समुच्चय एक जीव ज्ञानावर्णीय कर्म बांधता हुवा सात कर्म ( आयुः वर्ज ) बाँधे-आठ कर्म बांधे, छ कर्म बांधे ( आयुः मोहनी वर्जके ) एवं मनुष्य भी ७-८-६ कर्म बांधे । शेष नरकादि २३ दंडक सात कर्म बांधे आठ कर्म बांधे । इति । ___ समुच्चय घणा जीव ज्ञानावर्णीय कर्म बांधते हुवे ७-८-६ कर्म बांधे जिसमे ७-८ कर्म बांधणेवाला सास्वता और छे कर्म बान्धनेवाले असास्वता जिस्का भांगा ३.
(१) सात-आठ कर्म बांधनेवाले घणा ( सास्वता) (२) सात-आठ कर्म बांधनेवाले घणा और छ कर्म बांधनेवाला एक। (३) सात-आठ कर्म बांधनेवाले घणा और छे कर्म बांधने वाले भी घणा ॥
घणा नारकीका जीव ज्ञानावर्णीय कर्म वांधता ७.८ कम बांधे जिसमें सात कर्म बांधनेवाले सास्वते और आठ कर्म बां