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समौसरणाधिकार.
थोकडा नं. ६०
श्री भगवती सूत्र श० ३० समौसरण - अधिकार.
( ३६७ )
समौसरण चार प्रकार के कहा है यथा १ क्रियावादी २ अक्रियावादी ३ अज्ञानवादी और ४ विनयवादी क्रियावादी के सूडांग सूत्र में जो १८० भेद कहे है वह केवल मिध्यादृष्टि है और दशाश्रुत स्कंध में जो क्रियावादी कहे है उन्होंने पेस्तर मिथ्यादृष्टि में आयुष्य बांधा था उसके बाद में सम्यक्त्व प्राप्त किया है और यहां जो क्रियावादी कहे है वह सम्यकूदृष्टि है.
समुच्चयजीव में पूर्व जो ४७ बोल २६ वां शतक में कह आये है उसमें कृष्णपक्षी १ अज्ञानी ४ मिथ्यादृष्टि १ एवम् छै बोल में समौसरण ३ अक्रियावादी, अज्ञानवादी, और विनयवादी, इन तीनों समौसरण के जीव चारों गति का आयुष्य बांधे. और इनमें भव्य, अभव्य, दोनों होवे.
ज्ञान ४ और सम्यकदृष्टि १ इन पांचो बोलों में समौसरण १ क्रियावादी आयुष्य जो नारको, देवता, बांधे तो मनुष्य का और मनुष्य, तीर्थच बांधे तो वैमानिक का और नियमा भव्य है.
मिश्रदृष्टिमें समौसरण २ अज्ञानवादी और विनयवादी. आयुष्य का अबंधक और नियम भव्य हो.
मनः पर्यव ज्ञान और नोसंज्ञा में समौसरण १ क्रियावादी. आयुष्य बांधे तो वैमानिक का और नियमा भव्य होय.
कृष्ण, नील, कापोत, लेशीमें समौ० चार पावे. जिसमें क्रिया