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शीघ्रबोध भाग ५ बां. वादी आयुष्य मनुष्य का बांधे और नियमा भव्य होय. शेष तीन समौ० आयुष्य चारोंगति का बांधे, और भव्याभव्य दोनों होय ।
तेजो, पद्म, शुक्ल लेशी में समौ० चार पावे जिसमें क्रियावादी आयुष्य मनुष्य वैमानिकको बांधे और नियमा भव्य होय. शेष तीन समौ० नारकी वर्ज के तीनगति का आयुष्य बांधे और भव्याभव्य दोनों होय.
अलेशी, केवली, अयोगी, अवेदी, अकषायी, इन पांच बोलों में समौसरण १ क्रियावादी आयुष्य अबंधक और नियमा भव्य होय.
शेष २२ बोलों में समौसरण चारों जिसमें क्रियावादी आयु. व्य-मनुष्य और विमानिक का बन्धे और तीन समौ० वाले जीव आयुष्य चारों गति का बांधे. क्रियावादी नियमा भव्य होय बाकी तीनो समोसरण में भव्य अभव्य दोनों होय.
नारकी के पूर्वोक्त ३५ बोलों में कृष्णपक्षी १ अज्ञानी ४ और मिथ्यादृष्टि १ में समौसरण ३ पूर्ववत्. आयुष्य मनुष्य तीर्यच का बांधे और भव्य अभव्य दोनों होय-ज्ञान ४ और सम्यष्टि में समौसरण १ क्रियावादी आयुष्य मनुष्य का बांधे और निश्चय भव्य होय, मिश्रद्रष्टि समुच्चयवत्. शेष तेवीस बोल में समौसरण चार और आयुष्य मनुष्य तीर्यच दोनोंका वांधे । क्रियावादी नियमा भव्य-बाकी तीनो समौसरण के भव्य अभव्य दोनों होय इसी माफक देवताओं में नवग्रैवेक तक पूर्वोक्त जो जो बोल कह आये है उन सब बोलो में समौसरण नारकीवत् लगा लेना.
पांच अनुत्तरविमान के बोल २६ में समौसरण १ क्रियावादी आयुष्य मनुष्य का बांधे और नियमा भव्य होय.
पृथ्वीकाय, अप्पकाय, और वनास्पतिकाय, में पूर्वोक्त २७ बोलों के जीव में दो समौसरण पावे अक्रियावादी, और अज्ञान