________________
४७ बोलोंकि बन्धी.
( ३५७) (१) बांधा, बांधे बांधसी, यह सामान्यता से कहा है. बहुत भवपेक्षा.
(२) बांधा बांधे, न बांधसी, यह विशेष व्याख्या है. क्योंकि भव्य जीव है व तद्रव मोक्ष जायगा तब (न बांधसी.) ( २२ अकषायी में दो भांगा यथा-३-४ था.
(३) बांधा, न बांधे, बांधसी, उपशम श्रेणी दशमें, इग्यारमें गुण वर्तता हुआ भूत कालमें बांधा वर्तमान् ( न बांधे) परन्तु नियमा पीछा गिरेगा. तब (बांधसी)
(४) बांधा, न बांधे, न बांधसी.क्षपक श्रेणी वाले अकषायी है (२५) अलेशी, केवली और अजोगी, म भांगा १ बांधा, न बांधे, न बांधसी. बन्ध अभाष । (४७) लेश्या पांच, कृष्णपक्षी, अज्ञाना चार, वेद चार, संज्ञा चार, कषाय तीन, और मिथ्यात्वदृष्टि इन बाइस बोलों के जीवों में भांगा २ मिलते है यथा । १-२ जो।
(१) बांधा, बांधे, बांधसी, अभव्य की अपेक्षा से. (२) बांधा, बांधे, न बांधसी, भव्य की अपेक्षा से.
यह समुश्चय जीव की अपेक्षा से कहा. जैसे ही मनुष्य के दंडक में समझ लेना. शेष तेवीस दंडक के जीव में दो भांगा मिलते है यथा. १-२ जो. .. (१) बांधा, बांधे, न बांधसी, अभव्य की अपेक्षा विशेष व्याख्या न करके सामान्यता से.
(२) बांधा, बांधे, न बांधसी, यह विशेष व्याख्या है क्योंकि भव्य जीव है वह भविष्य में निश्चय मोक्ष जायगा तब (न बांधसी)
यह समुच्चय पापकर्म की व्याख्या की है. अब आठों कर्म