Book Title: Shighra Bodh Part 01 To 05
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 409
________________ अनंतरोत्पात. ( ३६३) मरकादि सब जगह विशेष कहना. इति चतुर्थोद्देशकम् . श्री भगवती सूत्र श० २६ उ० ५ परम्पर ओगाडा. जीव जीस गति में उत्पन्न हुवा है उस गति के आकास प्रदेश अवगायां को २ समय से यावत् भवांतर काल हुआ हो उसको परमपर ओगाडा कहते है. इसका सर्वाधिकार इसा शतक के प्रथम उसे वत् कहना परन्तु “परम्पर ओगाडा" का सूत्र सब जगह विशेष कहना. इति पंचमोदेशकम्. श्री भगवती सूत्र श० २६० उ०६ अणंत्तर आहारगा. जिस गति में जीव उत्पन्न हुआ है. उस गति में जो प्रथम समय आहार लिया. उसको अणंतर आहारगा कहते है. इसका सर्वाधिकार अणंतर उववन्नगा जो दूसरे उसे माफक समझना परन्तु अणंतर उववन्नगा की जगह पर “ अणंतर आहारगा का सूत्र कहना. इति षष्टमोददेशकम्.. श्री भगवती सूत्र श० २० उ०७ परम्पर आहारगा. जिस गति में जीव उत्पन्न हुवा है. उस गति का आहार द्वितीय समय से भवांतर तक ग्रहण करे उसको परम्पर आहा. रगा कहते हैं. इसका सर्वाधिकार प्रथम उद्देशा वत् समजना परन्तु "परम्पर आहारगा का सूत्र सब जगह विशेष कहना. इति सप्तमोददेशकम्. श्री भगवती सूत्र श० २६० उ० ८ अणंतर. पझत्तगा. जिस गति में जीव उत्पन्न हुआ है उस गति की पर्याप्ति बांधने के प्रथम समय को अणंतर पझत्तगा कहते हैं. इसका सर्वाधिकार इसी शतक के दूसरे उद्देशा वत्. परन्तु अणंतर उववन्नगा की जगह पर “ अणंतर पझत्तगा" का सूत्र कहना. इति अष्टमोदेशकम्. . श्री भगवती सूत्र श० २६ उ० ९ परम्पर पझत्तगा. पर्याप्ति के दूसरे समय से यावत् आयुष्य पर्यंत को परंपर

Loading...

Page Navigation
1 ... 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430