Book Title: Shighra Bodh Part 01 To 05
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 407
________________ ४७ बोलोंकि बन्धी. ( ३६१) थोकडा नं. ५६. ( श्री भगवती सूत्र शतक २६ उ ०२ ) अणंतर उववन्नगादि अंतरा रहितमोप्रथम समय उत्पन्न हुआ है उसकी अपेक्षा यह उद्देशा कहेंगे इसी शतक के पहिले उद्देशे में जो ४७ बोल प्रथम कह आये है उनमें से नीचे लिखे १० बोल प्रथम समय उत्पन्न हुआ है उसमें नहीं मिलते क्योंकि उत्पन्न होने के प्रथम समय में इन १० बोलों की प्राप्ति नहीं होसक्ती । यथा (१: अलेशी (२) मिश्रदृष्टि ( ३ ) मनःपर्यव ज्ञानी ( ४ ) केवलझानी ( ५) नो संज्ञा ( ६ ) अवेदी (७) अकषायी । ८) अयोगी (९ मनयोगी ( १० ) वचनयोगी शेष ३७ बोल समुच्चय जीवों में मिले. . नरकादि दंडकों में नारकी से लेकर बारह देवलोक तक पूर्वोक्त कहे हुए बोलो में से मिश्रदृष्टि, मनयोगी, और वचन योगी. यह तीन बोल कम करके शेष बोलो में प्रथम समय का उत्पन्न हुआ जीव मिले. नव ग्रैवेक तथा पांच अनुसर विमानों में पूर्वोक्त कहे हुए ३२ और २६ बोलो में से मनयोगी और वचनयोगी कम करके शेष बोलों में प्रथम समय का उत्पन्न हुआ जीव मिले। तिर्यच पंचेन्त्री में पूर्वोक्त कहे हुये ४० बोलों में से मिश्रष्टि, मनयोगी, और वचनयोगी, यह तीन बाल कम करके शेष ३७ बोलों में प्रथम समय का उत्पन्न हुवा जीव मिले ॥ मनुष्य दंडक में समुच्चयवत् ३७ बोलों में प्रथम समय का उत्पन्न हुवा जीव मिले।

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