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कर्मोकि नियमा भजना. (३३५ ) एक जीवके एक आत्मप्रदेशपर वेदनी कर्मकी कितनी अवेडी पवेडा है ?
सर्व संसारी जीवोंके आत्मप्रदेशपर नियमा अनंता २ है. एवम् आयुष्य, नामकर्म, और गोत्रकर्मभी है. यावत् अमख्यात आत्मप्रदेशपर है. इसी माफीक २४ दंडकोंमे समझ लेना. कारण जीव और कर्मके बंधनका सम्बंध अनंत कालसे लगा हुवा है. और शुमाशुभ कार्य कारणसे न्यूनाधिक भी होता रहता है.
- जहां ज्ञानावर्णीय है, वहां क्या दर्शनावरणीय है. एवम् यावत् अतराय कर्म? . नीचेके यंत्रद्वारा समझलेना. जहां (नि) हो वहां नियमा
और ( भ ) हो वहां भजना (हो या न भी हो) समझना. इति कर्ममार्गणा ज्ञाना. दर्श. वेदनी | मोह. आयु. नाम. गोत्र. | अंतराय. शानावरणीय दर्शनावरणीय वेदनीय मोहनीय आयुष्य नामकर्म गोत्रकर्म अंतराय
कममागणा
२
-
* में जब .
२०
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम्