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कर्मबन्धाधिकार. ( ३२१) छठे भाग में भी ५६ प्रकृतिका बंध है. सातवें भागमें देवगति १ दे. बानुपूर्वी २ पंचेन्द्री जाति ३ शुभविहायोगति ४ घसनाम ५ बादर ६ पर्याप्ता ७ प्रत्येक ८ स्थिर ९ शुभ १० सौभाग्य १६ सुःस्वर १२ आदेय १३ वैक्रिय शरीर १४ आहारक शरीर १५ तेजस शरीर १६ कार्मण शरीर १७ वैक्रिय अंगोपांग १८ आहारक अंगोपांग १९ समचतुःस्र संस्थान २० निर्माण नाम २१ जिन नाम २२ वरण २३ गंध २४ रस २५ स्पर्श २६ अगुरुलघु २७ उपधात २८ परा. धात २९ और उश्वास ३० एवम् तीस प्रकृति का बंध विच्छेद हीने से बाकी २६ प्रकृति बांधे.
(९) अनिवृत्ति गुणस्थानक का पांच भाग है. पहिले भाग में पूर्ववत् २६ प्रकृतिमेंसे हास्य १ रति २ भय ३ जुगुप्सा ४ ये चार प्रकृतिका बंध विच्छेद होकर बाकी २२ प्रकृति बांधे दुसरे भाग में पुरुषवेद छोडकर शेष २१ बांधे. तीजे भाग में संज्वलन का क्रोध १ चौथे भाग में संज्वलन का मान २ और पांचवे भाग में संज्वलनकी माया ३ का बंध विच्छेद होने से १८ प्रकृति का बंध होता है.
(१०) सूक्षम सम्पराय गुणस्थानक में संज्वलन के लोभका अबंधक है इसवास्ते १७ प्रकृतिका बंध होय.
(११) उपशांत मोह गुणस्थानक में १ शाता वेदनीय का बंध है. शेष ज्ञानावरणीय ५ दर्शनावरणीय ४ अंतराय ५ उच्च. गोत्र १ यशःकिर्ति १ इन १६ प्रकृतिका बंध विच्छेद हो. . (१२) क्षीणमोह गुणस्थानक में १ शाता वेदनीय बांधे.."
(१३) सयोगी केवली गुणस्थानक १ शाता वेदनीय बांधे. (१४) अयोगी गुणस्थानक में ( अबंधक ) बंध नहीं. इति बंध समाप्त. सेवंते सेवभंते तमेव सच्चम्.
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