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(३३०) शीघ्रबोध भाग ५ वा.
अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानी कोष; ' मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया, लोभ, और संज्वलन क्रोध, मान,माया, लोभ, इन सोलह प्रकृतियोंमेसे प्रथमकी १२ प्रकति समुच्चय जीव बांधे तो, जघन्य १ सागरोपमका सा तिया ४ भाग पल्योपमके असंख्यातमें भाग ऊंणी. और संज्वलमका क्रोध २ महीना. मान । महोना, माया १५ दिन और लोभ अंतर मुहर्तका बांधे. उत्कष्ट १६ प्रकतिका स्थितिबंध ४०कोडाकोडी सागरोपम. और अबाधाकाल ४ हजार वर्षका है । यही सोलह प्रकृति एकेन्द्री जघन्य १ साग० बेहन्द्री २५ सा० तेइन्द्री ५० साग चौरिंद्री १०० साग असंही पंचेन्द्री १ हजार साग० पल्योपमके असंख्यातमें भाग ऊंणी सर्व स्थान और उत्कष्ट सब जीध पूरी २ बांधे, संज्ञी पंचेन्द्री १२ प्रकृति जघन्य अंतः कोडा. कोडी सागरोपम तथा ४ प्रकृति पहिले लिखी उस मुजब बांधे. और उत्कृष्ट सोलहो प्रकृतिका स्थितिबंध तथा अबादाकाल समु. पय जीववत् समझना।
भय १ शोक २ जुगुप्सा ३ अरति ४ नपुंसक वेद ५ नरकगति ६ तिर्यचगति ७ एकेन्द्री ८ पंचेन्द्री ९ औदारिक शरीर १० " बंधन ११ अंगोपांग १२ और संघातन १३ क्रियशरीर १४ बन्धन १५ अंगोपांग १६ तथा संघातन १७ तैजस शरीर १८" बंधन १९ संघातन २० कारमण शरीर २१ कारमण शरीरका बंधन २२ तस्य संघातना २३ छेवठ्ठसंहनन २४ हुंडक संस्थान २५ कष्ण वर्ण २६ तिक्तरस २७ दुरभिगंध २८ करकश स्पर्श २९ गुरु स्पर्श ३० सीत स्पर्श ३१ रुक्ष स्पर्श ३२ नरकानुपूर्वी ३३ तियेचानुपूर्वी ३४ अशुभगति ३५ उश्वास ३६ उद्योत ३७ आतप ३८ पराघात ३९ उपघात ४० अगुरु लघु ४१ निर्माण ४२ स ४३ बादर ४४ पर्याप्ता ४५ प्रत्येक ४६ अस्थिर ४७ अशुभ ४८ दुर्भाग्य ४९ दुःस्वर ५० अयश ५१ अनादेय ५२ स्थावर ५३ और नीच गोत्र