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कर्मसत्ताधिकार. ( ३२५) (३) मिश्र गुणों में पूर्ववत् १४७ प्र० की सत्ता होय.
चौथे अविरति सम्यकदृष्टि गु० से ११ वे उपशांत मोह गु. तक संभव सत्ता १४८ प्रकति की है. परन्तु आठवें गु० से ११ धे गु० तक उपशम श्रेणी करनेवाला अनंतानुबंधी ४ नरकायु ५ त्रि. यंचायु ६ इन छै प्रकृतियों की विशंयोजना करे इस वास्ते १४२ प्रकृति को सत्ता होय. . क्षायक सम्यक्दृष्टिअचरम सरीरी चौथे से सातवे गु० तक अनंतानुबंधी ४ सम्यक्त्वमोहनीय ५ मिथ्यात्वमोहनीय ६ मिश्रमोहनीय ७ इन सात प्रकृतियों को खपावे शेष १४१ प्रकृति सत्ता
में होय,
क्षायक सम्यक्दृष्टि चरम शरीरी क्षपक श्रेणी करनेवालों के चौथे से नवमें ( अनिवृति ) गुरु के प्रथम भाग तक १३८ प्रकृति की सत्ता रहे. क्योंकि पूर्व कही हुइ सात प्रकृतियों के सिबाय नरकायु १ प्रियंचायु २ देवायु ३ ये तीन भी सत्ता से विच्छेद करना से।
क्षयोपशम सम्यक्त्व में वर्तता हुआ चौथे से सातवें गुण तक १४५ प्रकृति की सत्ता होय क्योंकि चरम शरीरी है इसलिये नरकायु १ त्रयंचायु २ देवायु की सत्ता न रहे। : नवमे गुण के दुसरे भागमें १२२ की सत्ता स्थावर ? सूक्ष्म २ त्रियंच गति ३ त्रियंचानुपूर्वी ४ नरकगति ५ नरकानुपूर्वी ६ माताप ७ उद्योत ८ थीणद्धी ९ निद्रा निद्रा १० प्रचला प्रचला ११ एकेन्द्री १२ बेइन्द्री १३ तेरिन्द्री १४ चौरिन्द्री १५ साधारण i६ इन सोले प्रकृतियों की सत्ता विच्छेद होय. ___ नवमें गुण० के दुसरे भागमें ११४ प्रकृति की सत्ता प्रत्याख्यानी ४ और अप्रत्याख्यानी ४ इन ८ प्रकृति की सत्ता विच्छेद होय. . नवमें गु० के चोथे भाग में ११३ प्रकृति की सत्ता. नपुंसकवे. दका विच्छेद हो.