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कर्माबाधाकाल.
( ३२७ )
४९ दुस्वर ५० अनादेय ५१ अयशः कीर्ति ५२ संस्थान ५८ अगुरू लघु ५९ उपघात ६० पराघात ६१ उश्वास ६२ अपर्याप्ता ६३ वेदनी ६४ प्रत्येक ६५ स्थिर ६६ शुभ ६७ औदारिक उपांग ६८ वैक्रिय उपांग ६९ आहारक उपांग ७० सुस्वर ७१ नीच्चगोत्र ७२ इन बोहत्तर प्रकृतियों की सत्ता टलने से १३ की सत्ता रहै. फिर मनुष्यानुपूर्वी के विच्छेद होने से १२ प्रकृति की सत्ता चरम समय होय. इनकों उसी समय क्षय करके सिद्ध गति को प्राप्त हो । बारह प्रकृतियों के नाम- मनुष्य गति १ मनुष्यायु २ त्रस ३ बादर ४ पर्याप्ती ५ यशः कीर्ति ६ आदेय ७ सौभाग्य ८ तीर्थकर ९ उच्चगौत्र १० पंचेन्द्री ११ और वेदनी १२ इति सत्ता समाप्ता
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम्.
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थोकडा नं. ४७,
श्री पन्नवणाजी सूत्र. पद २३
( अबाधाकाल. )
कर्मकी मूल प्रकृति आठ है, और उत्तर प्रकृति १४८ है .x कौन जीव किस २ प्रकृतिको कितने २ स्थितिकी बांधता है, और बांधनेके बाद स्वभावसे उदयमें आवे तो, कितने कालसे आवे, यह सब इस थोकडेद्वारा कहेंगे.
अबाधाकाल उसे कहते हैं. जैसे हुंडीकी मुदत पकजानेपर + कर्म ग्रन्थ में पांच शरीर के बन्धन १५ कहा है वास्ते १५८ प्रकृति मानी गई हैं.