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अष्टप्रवचन.
(२६९) सूक्ष्म० यथाख्या में कल्पदोय पावे अस्थित कल्प और कल्पातित इतिवारम् ।
(५) चारित्र-सामा० छदो में निग्रंथ च्यार होते है पुलाक बुकश प्रतिसेवन, कषायकुशील। परिहार० सूक्ष्म में एक कषाय कुशील निर्गथ होते है यथाख्यात संयममें निर्गथ और स्नातक यह दोय निग्रन्थ होते है द्वारम् ।
(६) प्रति सेवना-सामा० छेदो० मूलगुण (पांच महाव्रत) प्रति सेधी । दोष लगावे ) उत्तर गुण (पिंड विशुद्धादि) प्रतिसेवी तथा अप्रतिसेषी शेष तीन संयम अप्रतिसेवीहोते है द्वारम् ।
(७) ज्ञान-प्रथमके च्यार संयममें क्रमःसर च्यार ज्ञानकि भजना २-३-३-४ यथाख्यातमें पांच ज्ञानकि भजना ज्ञान पडने अपेक्षा सामा० छदो० जघन्य अष्ट प्रवचन उ० १४ पूर्व पड । परिहार. ज. नौवां पूर्व कि तीसरी आचार वस्तु उ० नो पूर्व सम्पुर्ण, सूक्ष्म० यथाख्यात ज. अष्ट प्रवचन उ० १४ पूर्व तथा सूत्र वितिरक्त हो इति द्वारम् ।
(८) तीर्थ-सामा० तीर्थ में हो, अतीर्थ में हो, तीर्थंकरोंके हो और प्रत्येक बुद्धियोंके होते है। छेदो० परि० सूक्ष्म तीर्थमें ही होते है यथाख्यात० सामायिक संयमवत् च्यारोंमें होते है। इति द्वारम्।
(९) लिंग-परिहार विशुद्धि द्रव्वे और भावें स्वलिंगी; शेष च्यार संयम द्रव्यापेक्षा स्वलिंगी अन्यलिंगी गृहलिंगी भी होते है । भावे स्वलिंगी होते इति द्वारम् ।
(१०) शरीर-सामा० छेदो० शरीर ३-४-५ होते है शेष तीन संयममै शरीर तीन होते है वह वैक्रय आहारीक नही करते है द्वारम् ।
(११) क्षेत्र-जन्मापेक्षा सामा० सूक्ष्म संपराय, यथाख्यात,