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शीघ्रबोध भाग ४ था.
ad छेद्रका निरुद्ध करणा, जीनसे असवला चारित्र और अष्ट प्रवचन माताकी उपयोग संयुक्त आराधना (निर्मल) करे.
(५) पंचम काउसग्गावश्यक प्रतिक्रमण करतां अना उपयोग रहा हुवा अतिचार रुपि प्रायश्चित जीस्कों शुद्ध करणे के लिये चार लोगस्सका काउस्सग करे एक लोगस्स प्रगट करे फल - भूत और वर्तमान कालका प्रायश्चितको शुद्ध करे जैसे कोई मनुष्यको देना हो या बजन कीसी स्थानपर पहुंचाना हो उनको पहुंचा देवे या देना दे दीया फिर निर्भय होता है इसी माफीक व्रत मे लगा हुवा प्रायश्चितकों शुद्ध कर प्रशस्त ध्यानके अन्दर सुखे सुखे विचरे.
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(६) छठा पञ्चखाणावश्यक - गुरु महाराजको द्वादशा वृतसे २ वन्दना देके भविष्यकालका पञ्चखाण करे। फल आता हुवा आवक रोके और इच्छाका निरुद्ध होनासे पूर्व उपार्जित कर्मोंका क्षय करे.
यह षढावश्यक रुप प्रतिक्रमण निर्विघ्नपणे समाप्तं होने पर भाव मंगल रुप तीर्थंकरादि स्तुति चैत्यवन्दन जघन्य ३ श्लोक उत्कृष्ट ७ श्लोक से स्तुति करना । फल ज्ञान दर्शन चारित्रकि आराधना होती है जीससे जीव उन्ही भवमें मोक्ष आवे अथवा विमानक देवतां मे जावे वहांसे मनुष्य होके मोक्षमें जावे उत्कृष्ट करे तो भी १५ भवसे अधिक न करे.
रात्रिका कृत्य.
जब प्रतिक्रमण हो जावे तव स्वाध्यायका काल आने से काल पडिलेहन करे जेसे ठाणयंग सूत्रका दशमा ठाणा में १० प्रकारकी आकाशकी असज्झाय बताई है यथा तारो तुटे, दीशा लाल, अकालमें गाज वीजली, कडक भूमिकम्प, बालचन्द्र,