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शीघ्रबोध भाग ५ वा. थोकडा नम्बर ४३
( कर्म प्रकृति विषय. ) ज्ञानगुण दर्शनगुण चारित्रगुण और वीर्यगुण यह च्यार चैतन्य के मूल गुण है जिस्कों कोनसी कर्म प्रकृति चैतन्य के सर्व गुणों कि घातक है और कोनसो कर्म प्रकृति देश गुणों कि घातक है बह इस थोकडा द्वारा बतलाते है। . . कैवल्यज्ञानावर्णिय कवल्य दर्शनावर्णिय मिथ्यात्व मोहनिय, निद्रा, निंद्रा निंद्रा, प्रचलानिंद्रा, प्रचलाप्रचलानिंद्रा, स्त्या. नद्धि निद्रा अनंतानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोमअप्रत्याख्यानि क्रोध-मान-माया-लोभ, प्रत्याख्यानि क्रोध-मान-माया-लोम. एवं २० प्रकृति सर्व घाती है। ___ मतिज्ञानावणिय श्रुतिज्ञानावर्णिय अवधिज्ञानाणिय मनः पर्यवज्ञानावणिय-चक्षुदर्शनावणिय अचक्षुदर्शनावणिय अवधि दर्शनावर्णिय संज्वलनका क्रोध-मान-माया लोभ-हास्य भय शोक जुगप्सा रति अरति त्रिवेद पुरुषवेद नपुंसकवेद दांनान्तराय लाभान्तराय भोगान्तराय उपभोगान्तराय वीर्यान्तराय एवं २५ प्रकृति देशघाती है तथा मिश्रमोहनिय. सम्यक्त्वमोहनिय यह दो प्रकृति भी देशघाती है !
शेष प्रत्येक प्रकृति आठ, शरीरपांच, अंगोपांगतीन, संहनन छे, संस्थान छे, गतिच्यार, जातिपांच, विहायोगति दो, अनुपूर्वी आयुष्यच्यार सकिदश, स्थावरकिदश, वर्णादिच्यार, गौत्रकि २ प्रकृति एवं ७३ प्रकृति अघाती है।
थोकडा नम्बर ४१ में आठ कर्मो कि १५८ प्रकृति है जिसमें