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शीघ्रबोध भाग ५ वां.
गांभीर्य सर्व जनसे प्रिति गुणानुरागी उदार परिणामि इत्यादि कारणोंसे जीव मनुष्यका आयुष्य बन्धता है। सराग संयम, संयमासयम अकाम निर्जरा बाल तपस्वी देवगुरु मातापितादिका विनय भक्ति करे देव पूजन सत्यका पक्ष गुणोंका रागी निष्कपटी संतोषी ब्रह्मचर्य व्रत पालक अनुकम्पा सहित श्रमणोपासक शास्ररागी भोग त्यागी इत्यादि कारणोंसे जीव देवायुष्य बान्धता है।
(६) नामकर्मकि दो प्रकृति है (१) शुभनामकर्म (२) अशुभ नामकर्म जिस्मे सरल स्वभावी-माया रहित मन वचन काया वैपार जिस्का एकसा हो वह जीव शुभनामको बन्धता है गौवरहित याने ऋद्धिगौर्व रसगौर्व, सातागौवं इन तीनों गौर्वसे रहित होना पापसे डरनेवाला क्षमावान्त मर्दवादि गुणोंसे युक्त परमेश्वरकि भक्ति गुरु वन्दन तत्वज्ञ राग द्वेष पतले गुणगृहो हो एसे जीव शुभ नामकर्म उपार्जन कर सकते है। दुसरा अशुभ नामकर्म-जैसे मायावी जिनोंके मन वचन कायाकि आचारणा में और वतलाने मे भेद है। दूसरों के ठगनेवाले जूटी गवाही देनेवाले। घृत में चरबी दुद्ध में पाणी या अच्छी वस्तु में बुरी वस्तु मीला के वेचने पाले । अपनि तारीफ और दूसरोंकी निंदा करनेवाले वैश्यावों के वस्त्रालंकार दे दुसरे को ब्रह्मव्रत से पतित बनानेवाले इत्यादि देवद्रव्य ज्ञानद्रव्य साधारणद्रव्य खानेवाले विश्वासघात करने वाले इत्यादि कारणों से जीव अशुभ नामकर्म उपार्जन कर सं. सार में परिभ्रमन करते है.
(७) गौत्रकर्म कि दो प्रकृति है ।१) उच्चगौत्र २) निचगौत्रजिस्मे किसी व्यक्ति में दोषों के रहते हुवे भी उनका विषय में उदासीन सिर्फ गुणो को ही देखनेवाले है । आठ प्रकार के मदों से रहित अर्थात् जातिमद, कुलमद, बलमद, चोथो रुपमद, श्रुत