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शीघ्रबोध भाग ४ था .
करो तो अग्लानपने व्यावश्थ करे अगर गुरु आदेश करेकी स्वा ध्याय करो तो प्रथम पेहरका रहा हुवा तीन भागमें मुलसूत्रोंकि स्वाध्याय करे अथवा अन्य साधुवकों वाचना देवे स्वाध्याय केसी है की सर्व दुखको अन्त करनेवाली हैं.
दिनका दुसरा पहेर में ध्यान करे अर्थात् प्रथम पेहरमें मूल urant स्वाध्याय करी थी उस्का अर्थोपयोग संयुक्त चितवन करे. शास्त्रोंका नया नया अपूर्वज्ञानके अन्दर अपना चित्त रमण करते रहना जीनसे जगत् कि सर्व उपाधीयां नष्ट हो जाती है वही चेतनका मोक्ष है.
दिनके तीसरे पेहरमें जब पूर्ण क्षुधा सताने लग जावे अर्थात् छ कारण ( थोकडा नं० ३२ में देखो ) से कोइ कारण हो तो पूर्व पडिलेहा हुवा पात्रा ले के गुरु महाराजकी आज्ञा पूर्वक आतु रता चपलता रहित भिक्षाके लिये अटन करे भिक्षा लानेका ४२ तथा १०१ दोष ( थोकडे नं० ३२ में देखो ) वर्जित निर्वधाहार लावे इरियावहि आलोचना कर गुरुकों आहार दीखा के अन्य महात्मावको आमन्त्रण करे शेष रहा हुवा आहार माण्डलाका पांच दोष वर्ज के क्षणवार भावना भावे धन्य है जो मुनि तपश्चर्या करे बादमे अमुच्छित अगिद्धपणे संयम यात्रा निर्वाहने के लिये तथा शरीरको भाडा रुप आहार पाणी करे। अगर कीसी क्षेत्र में तीसरा पेहरमें भिक्षा न मिलती हो तो जीस बक्तमें मीले उस क् लावे एसा लेख दशवैका लिकसूत्र अ० ५ उ २ गाथा ४ में हैं ) इस कार्य में तीसरी पेहर खतम हो जाति है
दिनके चोथे पेहरका चार भागमें तीन भाग तक स्वाध्याय करे और चोथा भागमें विधिपूर्वक पडिलेहन ( पूर्व प्रमाणे ) करे माथमें स्थंडिल भी द्रष्टीसे प्रतिलेखे बादमें दीनके विषय जो लागा हुवा अतिचार जिस्की आलोचना रुप उपयोग संयुक्त प्रतिक्रमण करे.