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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला पुष्प नं. ३० श्री रत्नप्रभरि सद्गुरुभ्यो नमः अथ श्री शीघ्रबोध भाग ५ वां.
थोकडा नम्बर ४०
( जड चैत्यन्य स्वभाव . )
ataar स्वभाव चैतन्य और कर्मोंका स्वभाव जड एवं ata और कर्मोंका भिन्न भिन्न स्वभाव होने पर भी जैसे धूल में धातू तीलों में तैल दूधमें घृत है, इसी माफीक अनादि काल से ate और कर्मों के संबन्ध है जैसे यंत्रादि के निमित्त कारण सेधूल से धातु तीलोंसे तैल दूधसे घृत अलग हो जाते है इसी माफीक जीवों को ज्ञान, दर्शन, तप, जप, पूजा, प्रभावनादि शुभ निमित्त मीलने से कर्मों और जीव अलग अलग हो जीव सिद्ध पदक प्राप्त कर लेते है.
जबतक जीवोंके साथ कर्म लगे हुवे है तबतक जीव अपनि दशाको भूल मिध्यात्वादि परगुण में परिभ्रमन करता है जैसे सुवर्ण आप निर्मल अकलंक कोमल गुणवाला है किन्तु अग्निका संयोग पाके अपना असली स्वरुप छोड उष्णता को धारण करता है फीर जल वायुका निमित्त मीलने पर अग्निको त्यागकर अपने असली गुणको धारण कर लेता है इसी माफीक जीव भी निर्मल