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कर्मबन्ध हेतु.
थोकडा नम्बर ४२
( ३०९ )
( कर्मो के बन्धहेतु )
कर्मबन्धके मूल हेतु चार है यथा-मिथ्यात्व (५) अवृति (१२) कषाय (२५) योग (१५) एवं उत्तर हेतु ५६ जिसद्वारा कर्मोंके दल एकत्र हो आत्मप्रदेशोंपर बन्धन होते हैं यह विशेष पक्ष है परन्तु यहां पर सामान्य कर्मबन्धहेतु लिखते है । जेसे ज्ञानावर्णिय कर्मबन्धके कारण इस माफीक है
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ज्ञान या ज्ञानवान् व्यक्तियोंसे प्रतिकूळ आचरणा या उनोंसे वैर भाव रखना । जीसके पास ज्ञान पढा हो उनका नाम को गुप्त रख दुसरोंका नाम कहना. या जो विषय आप जानता हो उनकों गुप्त रख कहना कि में इस बातको नहि जानता हूं । ज्ञानीयांका तथा ज्ञान और ज्ञान के साधन पुस्तक विद्या मन्दिर पाटी पोथी ठवणी कल्मादिका जलसे या अग्निसे नष्ट करना या उसे विक्रय कर अपने उपभोगमें लेना । ज्ञानीयोंपर तथा ज्ञानसाधन पुस्तकादिपर प्रेम स्नेह न करके अरुची रखना । विद्यार्थीयोंके विद्याभ्यास में विघ्न पहुंचाना जैसे कि विद्यार्थीयोंके भोजन वख स्थानादिका उनको लाभ होता हो तो उसे अंतराय करना या विद्याध्ययन करते हुवों को छोडा के अन्य कार्य करवाना। ज्ञानीयोंकि आशातना करना करवाना जैसे कि यह अध्यापक निच कूल है या उनके मर्म की बातें प्रकाश करना ज्ञानीयांको मरणान्त कष्ट हो एसे जाल रचना निंधा करना इत्यादि । इसी मा फीक निषेध द्रव्य क्षेत्र काल भावमें पढना पढानेवाले गुरुका .. विनय न करना जुटा हाथोसे तथा अंगुलीके थुक लगाके पुस्तकोंके पत्रको उलटना ज्ञानके साधन पुस्तकादिके पैरोंसे हटाना
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