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शीघ्रबोध भाग ५ वां.
स्थंभ सादृश, माया वांसकी जड सादृश, लोभ करमजी रेस्मके रंग सादृश घात करे तो सम्यक्त्वगुणकि स्थिति यावत् जीवकि, गति करें तो नरककि || अप्रत्याख्यानि क्रोध तलावकि तड, मान दान्तकास्थंभ, माया मंढाका श्रृंग, लोभ नगरका कीच, घात करे तो श्रावकके व्रतोकि स्थिति एक वर्षकि. गति तीर्यच कि ॥ प्रत्याख्यानि क्रोध गाडाकी लीक, मान काष्टका स्थंभ, माया चालता बैलकामूत्र, लोभ नेत्रोंके अञ्जन घात करे तो सर्व व्रतकि, स्थिति करे तो च्यार मासकि, गति करें तो मनुष्यकी ॥ संज्वलनका क्रोध पाणीकी लीक, मान तृणका स्थंभ, मायावांसकी छाल लोभ हलदिका रंग, घात करे तो वीतरागपणाकों, स्थिति क्रोधकी दो मास. मानकी एक मास, मायाकी पन्दरा दिन, लोभकी अन्तर मुहुर्त. गति करे तो देवतावोंमें जावें. इन सोलह प्रकारकी कषायकों कषाय मोहनिय कहते है
नौ नोकषाय मोहनिय-हास्य-कतृ हल मश्करी करना । भय-डरना विस्मय होना। शोक-फीकर चिंता आर्तध्यान करना। जुगुप्सा-ग्लानी लाना नफरत करना। रति आरंभादिकार्योंमें खुशी लाना। अरति-संयमादि कार्योंमे अरति करना । स्त्रीवेदजिस प्रकृतिके उदय पुरुषोंकि अभिलाषा करना । पुरुषवेद जिस प्रकृतिके उदय स्त्रियोंकि अभिलाषा करना। नपुंसक वेद जिस प्रकृति के उदय खि-पुरुष दोनोंकि अभिलाष करना ॥ एवं २८ प्रकृति. मोहनियकर्मकी है।
(५) आयुष्य कर्मकि च्यार प्रकृति है यथा-नरकायुष्य, तीर्यचायुष्य, मनुष्यायुष्य, देवायुष्य । आयुष्यकर्म जेसे कारागृ. हकी मुदत हो इतने दिन रहना पड़ता है इसी माफीक जोस गतिका आयुष्य हो उसे भोगवना पडता है।
(६) नामकर्म चित्रकार शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के