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(२९२) शीघ्रबोध भाग ४ था. चन्दन कर पञ्चखांन करना और गुरु आज्ञा माफिक पूर्ववत् दीनकृत्य करते रहेना.
इसी माफिक दिन और रात्रिमें बरताव रखना और भी, ज्ञान, ध्यान, मौन, विनय, व्यावञ्च पर्वाराधन तपश्चर्या दीनरात्रिमें सात वेर चैत्यवन्दन चार बार सजाय समिति गुप्ति भाषा पूजन प्रतिलेखनके अन्दर पूर्ण तय उपयोग रखना पंच महाव्रत पंच समिति तीन गुप्ति यह १३ मूल गुण है जीस्मे हमेशा प्रयत्न करते रहेना एक भवमे यदकिंचित् परिश्रम उठाणा पडता है परन्तु भवोभवमें जीव सुखी हो जाता है. ,
यह श्री सुधर्मास्वामिकी समाचारी सर्व जैनोंको मान्य है वास्ते झघडे की समाचारीयांको तिलाञ्जलि देकं सुधर्म समा. चारीमें यथाशक्ति पुरुषार्थ करे ताके शीघ्र कल्याण हो. शान्तिः . शन्तिः
शान्तिः सेवभते-सेवंभंते-तमेवसञ्चम्.
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* ॥ इति शीघ्रबोध चतुर्थ भाग समाप्तम् ॥