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समाचारी.
( २८७ )
बहुपडि पूनापोरसीका मान जेष्ठआसाढ श्रावण मासमे जो पेहरकी छाया बताई है जीसमें ६ आंगुल छाया नादा और भाद्रपद आश्वन कार्तिक में ८ आंगुल मगसर पोष माघ में १० आंगुल फाल्गुन चैत वैशाखमें ८ आंगुल छाया बाढानेसे पडिपून्ना पौरसीका काल आते है इस वक्त मुपत्ती वा पात्रादिको फिरसे पडिलेहन की जाती है.
ura मास और संवत्सरका मान विशेष जोतीषीयांको rasमें लिखेंगे यहां संक्षेपसे लिखते है. जैन शास्त्रमें संवत्सर की आदि श्रावण कृष्ण प्रतिपदासे होती है. श्रावण मास ३० दोनोंका होता है. भाद्रपद मास २९ दीनोंका जीसमें कृष्णपक्ष १४ दीनोंका और शुक्ल पक्ष १५ दोनोंका होता है आश्वन मगसर माघ चैत जेष्ट मास यह प्रत्येक ३० दीनोंका मास होता है और कार्तिक पोष फाल्गुन वैशाख आषाढ मास प्रत्येक २९ दीन का होता है जो एक तिथी घटती है वह कृष्णपक्ष में ही घठती है. इस सुधर्मा भगवान् के मंत्र को मान देनासे जैनों में पक्खि संवत्सरिका झघडा को स्वयं तिलांजली मिल जावेगी
दिनका प्रथम पेहरका चोथा भाग में ( सूर्योदय होनासे दो घडी ) पडिलेहन करे किंचत् मात्र वस्त्रपात्रादि उपगरण विगेरे पडिलेहा न रखे + पडिलेहनकि विधि इसी भागके चतुर्थ समिति में लिखि गइ हे सो देखो.
पडिलेहन कर गुरु महाराजकों विधिपूर्वक वन्दन नमस्कार कर प्रार्थना करेकि हे भगवान् अब में कोई साधुवोंकी व्यावच्च करूं या स्वाध्याय करूं? गुरु आदेश करेकि अमुक साधुकि व्यावच्च
* यह मान चन्द्र संवत्सरका कहा हैं
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+ किंचत् मात्रोपधि विगर पडिलेही रखे तो नसिथसूत्र तीजे उद्देशे मासिक प्रायश्चित कहा है.