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समाचारी.
( २८५) (४) पडिपुच्छना--अन्य साधुवोंको हरेक कार्य हो तो गुरुसे पुच्छ कर वह कार्य गुरु आदेशसे ही करे ।
(५) छेदणा-जो गोचरी में आया हवा आहार पाणी गुरुवादि की मरजी माफिक सर्व साधुषोंको संविभाग करे अपने विभागमें आये हुवे आहार की क्रमशः सर्व महा पुरुषोकों आमन्त्रण करे. याने सर्व कार्य गुरु छांदे ( आज्ञा ) से करे ।
(६) इच्छार-हरेक कार्यके अन्दर गुरुवादिसे प्रार्थना करेकि हे भगवान : आपश्रीकी मरजी हो तो यह कार्य करें या में करुं ( पात्रलेपादि)
(७) मिच्छार-यत्किंचित् भी अपराध हुवा हो तो गुरु समीप अपनी आत्मा को निंदनारुप मिच्छामि दुक्कडं देना. आइ. न्दासे में यह कार्य नही करुंगा।
(८) तहकार-गुरुवादिका वचन हरवक्त तहत्त करके परिमाण खुश दीलसे. स्व.कार करना।
(९) अपभुठणा-गुरुवादि साधुभगवान या ग्लानी तपस्वी आदि की व्यावञ्च के लिये अग्लानपणे व्यावच्च में पुरुषार्थ कर लाभ लेना मेघमुनिकी माफीक अपना क्षणभंगुर शरीर मुनियों की व्यावच्च में अर्पण करना.
(१०) उपसंपया-जीवन पर्यन्त गुरुकुल वास सेवन करना क्षण मात्र भी दुर नहीं रहेना । गुरुआज्ञाका पालन करना)
(साधुओंका दिन कृत्य.) सूर्योदय होनेसे दिन कहा जाता है, एक दिनकी चार पेहर और एक रात्रिकी चार पेहर एवं आठ पेहरका दिनरात्री होती है
. पेहर दीनका प्रमाण बताते है. जीससे साधुओंको टाइमकी घडीयां रखने की जरूरत न पडे. - असाढ सुद १५ कर्के शक्रांत सूर्य दक्षीणायन सर्व अभीत्तर मन्डले चाल चाले तब १८ मूहुर्तका दीन होता है उस वक्त तडका