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शीघ्रबोध भाग ४ था.
थोकडा नम्बर ३६ श्री उत्तराध्ययनजी सूत्र अध्ययन २६
(साधु समाचारी) श्री जिनेन्द्र देवोंकि फरमाइ हुइ सामाचार को आराधन कर अनन्ते जीष मोक्षमे गये है-जाते है और जायेंगे.
दश प्रकारकी समाचारीके नाम (१) आवस्सिय (२) निसि. हिंय ३) आपुच्छणा (४) पडिपुच्छणा (५) छंदणा (६) ईच्छाकार (७) मिच्छाकार (८) तहकार ९ अब्भुठणा (१०) उपसंपया.
(१) आवस्सिय-साधु को आवश्य x कारण हो तव ठेरे हुवे उपासरासे बाहर जाना पडे तो जाती वक्त पेस्तर आव. स्सिय ऐसा शब्द उच्चारण करे ताके गुरुवादिको ज्ञात हो जावे की अमुक साधु इस टाइमम बाहर गया है.
(२) निसिहि-कार्यसे निवृत्ती पाके पीछा स्थान पर आती वक्त निसिहि शब्द उच्चारण करे ताके गुरुवादिको ज्ञात हो की अमुक साधु बाहरसे आया है यदि कम-ज्यादा टाइम लगी हो तो इस वातका निर्णय गुरु महाराज कर सके है.
(३) आपुजणा-स्वयं अपने लिये यचित् भी कार्य हो तो गुरुवादिको पुच्छे अगर गुरु आज्ञा दे तो वह कार्य करे. . (गोचरिआदि.)
x साधु चार कारण पा के उपासरा बाहर जाते है सो कारण [१] आहार पानी आदि लानेकों [२] निहार-स्थंडिले मात्र जाना हो तो [३] वीहार-एक ग्रामसे दुसरे ग्राम जाना हो तो [४] जिनप्रासाद जाना हो तो. सिवाय चार कारण के बाहार न जावे अपने स्थानपर हि स्वाध्याय ध्यान में ही मस्त रहे.