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शीघ्रबोध भाग ४ था.
(७) यथा ज० उ० आपसमें तूल्य अनंतगु० द्वारम्
(१६) योग-पहलेके च्यार संयम संयोगि होते है, यथा. ख्यात संयोगि अयोगि भी होते है । द्वारम्
(१७) उपयोग-सूक्ष्म० साकारोपयोगवाले, शेष च्यार संयम साकार अनाकार दोनों उपयोगवाले होते है। द्वारम्
(१८) कषाय-प्रथमके तीनसंयम संज्वलनके चोकमें होता है। सूक्ष्म संज्वलनके लोभमें और यथाख्यात० उपशान्त कषाय और क्षिण कषायमें भी होता है । द्वारम्
(१९) लेश्या-सामा. छेदो० में छेओं लेश्या, परिहार० तेजों पद्म शुक्ल तीनलेश्या, सूक्ष्म एक शुक्ल, यथाख्यात. एक शुक्ल तथा अलेशी भी होते है । द्वारम्
(२०) परिणाम-सामा छेदो० परिहार० हियमान वृद्धमान और अवस्थित यह तीनों परिणाम होते है। जिस्में हियमान वृ. द्धमानकि स्थिति ज० एक समय उ० अन्तरमहुर्त और अवस्थि तकि ज एक समय उ० सोत समय । सूक्ष्म परिणाम दोय हियमान वृद्धमान कारण श्रेणि चढते या पडते जीव वहां रहते है उन्होंकि स्थिति ज. उ० अन्तरमहुर्तकि है। यथाख्यात. परिणाम वृद्धमान. अवस्थित जिस्में वृद्धमानकि स्थिति ज. उ० अन्तर महुर्त और अवस्थितकि ज. एक समय उ० देशोनाकोड पूर्व ( केवलीकि अपेक्षा ) द्वारम् ।
(२१) बन्ध सामा० छदो० परि० सात तथा आठ कर्म बन्धे. सात बन्धे तो आयुष्य नहीं बन्धे । सूक्ष्म० आयुष्य मोहनिय कर्म वर्जके छे कर्मबन्धे । यथाख्यात. एक साता वेदनिय बन्धे तथा अबन्ध । द्वारम्