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संयति अधिकार. (२७१) देवतावों में इन्द्र, सामानिक, तावत्रीसका, लोकपाल, और अहमेन्द्र यह पांच पद्वि है। सामा० छेदो० आराधि होतो पांचोंसे एक पहिवाला देव हो. परिहार विशुद्धि प्रथमकि च्यार पहिसे एक पद्विधर हों। सुक्ष० यथा० अहमेन्द्रि पद्विधर हों। जघन्य विराधि होतो च्यार प्रकारके देवोंसे देव होवें । उत्कृष्ट विराधि हो तो संसारमंडल । इतिद्वारम् ।
(१४) संयमके स्थान-सामा० छेदो० परि० इन तीनों संयमके स्थान असंख्याते असंख्याते है। सूक्षम अन्तर महुर्त के समय परिमाण असंख्याते स्थान है। यथाख्यात के संयमका स्थान एक ही है। जिस्की अल्पाबहुत्व।
(१) स्तोक यथाख्यात सं० के संयम स्थान | (२) सूक्ष्म० के संयमस्थान असंख्यातागुने । (३) परिहारके , (४) सामा० छेदो० सं० स्थ० तूल्य असं० गु०
(१५) निकाशे-संयमके पर्यव एकेक संयमके पर्यष अनंते अनन्ते है। सामा० छेदो० परिहार० परस्पर तथा आपसमें षटगुन हानिवृद्धि है तथा आपसमे तुल्य भी है। सूक्ष्म यथाख्यातसे तीनों संयम अनन्तगुने न्यून है। सूक्ष्म तीनोंसे अनन्तगुन अधिक है आपसमें षट्गुन हानि वृद्धि, यथाख्यातसे अनन्त गुन न्यून है। यथा० च्यारोंसे अनन्तगुन अधिक है। आपसमें तुल्य है। अल्पाबहुत्व।
(१) स्तोक सामा० छेदो० जघन्य संयम पर्यत्र आपसमें तूल्य, (२) परिहार० ज० स० पर्यव अनंतगुने । (३) , उत्कृष्ट " " (४) सा० छ० , , , (५) सू. ज. " "