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. संयमाधिकार.
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(२२) वेदे प्रथमके च्यार संयम आठों कर्मवेदे । यथाख्यात. सात (मोहनिय वर्जके ) कर्मवेदे तथा च्यार अघातीया कर्म वेदे।
(२३) उदिरणा-सामा० छेदो परि० ७-८-६ कर्मउदिरे. सात आयुष्य और छे आयुष्य मोहनीय वर्जके । सूक्ष्म ५-६ कर्म उदिरे पांच आयुष्य मोहनिय वेदनिय वर्जके । यथाख्या०५-२ दोय नाम गौत्र कर्मकि उदिरणा करे तथा अनुदिरणा भी है।
(२४) उपसंपझाण-सामा सोमायिक संयमकों छोडे तो. छदोपस्थापनिय सूक्षम संपराय संयमासंयमि (श्रावक ) तथा असंयम में जावे । छेदो० छदोपस्थापनीयकों छोडे तो० सामा० परि० सूक्ष्म असंयम, संयमासंयम में जावे। परि० परिहार विशुद्धिको छोडे तो छेदो० असंयम दो स्थानमें जावे । सूक्ष्म सूक्ष्मसंपराय छोडे तो सामा० छेदो० यथा० असंयममें जावे। यथा यथाख्यातको छोडके सूक्ष्म० असंयम और मोक्षमें जावे सर्व स्थान असंयम कहा है वह संयम कालकर देवतावों में जाते है उस अपेक्षा समझना इतिद्वारम् ।
(२५) संज्ञा-सामा० छेदो० परि० च्यारो संज्ञावाले होते है तथा संज्ञा रहित भी होते हैं शेष दोनों नो संज्ञा है।
(२६) आहार-प्रथमके च्यार संयम आहारीक है यथाख्यात स्यात् आहारीक स्यात् अनाहारीक (चौदवागुण)
(२७) भव-सामा• छेदो परि० जघन्य एक उत्कृष्ट ८ भव करे अर्थात् सात देवके और आठ मनुष्यके एवं १५ भव कर मोक्ष जावे सूक्ष्म ज० एक उ. तीन भव करे । यथा० ज० एक उ० तीन भव करे तथा उसी भव मोक्ष जावे । १८