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पांचमहाव्रत.
(२७९)
थोकडा नम्बर ३७
सूत्र श्री दशवैकालिक अध्ययन ४.
( पांच महाव्रतोंका १७८२ तणावा.) जिस तरह तंबू ( डेरे ) को खड़ा करने के लिये मुल चोब, ( बडी) उत्तर चोब ( छोटी ) बांस और तणावा (खूटीसे बंधी हुई रसी) की जरूरत है, इसी तरह साधूकों संयमरूपी तंबूके खरे (कायम ) रखनेमें पांच महाव्रतादि सात बडी चोबकी जरूरत है. और प्रत्येक चोबकी मजबूतीके लिये सूक्ष्म, बादरादि (४-४-६-३-६-४-६) करके तेतीस उत्तर चोब है. प्रत्येक उत्तर योबको सहारा देनेवाले तीन करण, तीन जोगरूपी नौ २ वांस लगे है (इस तरह ३३ को ९ का गुणा करनेसे २९७ हुए ) और इन वालोंको स्थिर रखने के वास्ते प्रत्येक वांसके दिनरात्रादि, छै २ तणावा है. इस तरह २९७ को छै गुणा करनेसे १७८२ तणांवे हुए वा तणावे चोब वांसादिको स्थिर रखते है. जिससे तंबू खडा रहता है. यदि इनमें से एक भी तणावा.मोहरूपी हवा से ढीला हा जाय तो तत्काल आलोचना रूपी हथोडेसे ठोक कर ममबूत करदे तो संजमरूपी तंबू कायम रह सकता है. अगर एसा न किया जावे तो क्रमसे दूसरे तणावे भी ढीले हो कर तंबू गिर मानेका संभव है. इस लिये पूर्णतय इसको कायम रखनेका प्र. यत्न करना चाहिये. क्योंकि संयम अक्षयसुखका देनेवाला है. - अब प्रत्येक महाव्रतके कितने २ तणावे है सो विस्तार सहित दिखाते है. . (१) महावत प्राणातिपात-सूक्ष्म, बादर, प्रस और स्था.