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शीघ्रबोध भाग ४ था.
(३) यथाख्यात संयमवाले संख्यात गुने । (४) छदोपस्थापनिय संयमवाले संख्यात गुने । ( ५ ) सामायिक संयमवाले संख्यात गुने । ॥ सेवंभंते सेवंभंते तमेव सच्चम् ॥
थोकडा नम्बर ३६
श्री दशवैकालिक अध्ययन ३ जा.
सूत्र
( ५२ अनाचार )
जिस वस्तुका त्याग कीया हो उन वस्तुको भोगवनेकी इच्छा करना, उनकों अतिक्रम कहते है और उन वस्तुप्राप्तिके लिये कदम उठाना प्रयत्न करना, उनको व्यतिक्रम कहते है तथा उन वस्तुको प्राप्त कर भोगवनेकी तैयारीमें हो उनको अतिचार कहते है और त्याग करी वस्तुकों भोगव लेनेसे शास्त्रकारोंने अनाचार कहा है। यहांपर अनाचारके ही ५२ बोल लिखते है ।
( १ ) मुनिके लिये वस्त्र, पात्र, मकान और असनादि व्यार प्रकारका आहार मुनिके उद्देशसे कीया हुवा मुनि लेवे तो अनाचार लागे ।
( २ ) मुनिके लिये मूल्य लाइ हुइ वस्तु लेके मुनि भोगवे तो अनाचार लागे ।
(३) मुनि नित्य एक घरका आहार भोगवे तो अनाचार (४) सामने लाया हुवा आहार भोगवे तो अनाचार " (५) रात्रिभोजन करते अनाचार लागे ।
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