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३६ बोल.
(२६७) दिन मध्यम च्यार मास उत्कृष्ट छे मास. (२) बावीस तीर्थंकरों के तथा महाविदेह क्षेत्रमें मुनियों के सामायिक संयम जावजीव तक रहते है. (२) छदोपस्थापनिय संयम, जिस्का दो भेद है. (१) स अतिचार जो पूर्व संयमके अन्दर आठवां प्रायश्चित सेवन करने पर फीरसे छंदो० संयम दिया जाता है (२) तेवीसवे तीर्थकरोका साधु चौवीसवें तीर्थंकरोंके शासनमें आते है उसकों भा छंदो० संयम दिया जाते है वह निरातिचार छंदो० संयम है (३) परिहार विशुद्ध संयमके दो भेद है (१) निवृतमान जेसे नौ मनुष्य नौ नौ वर्षके हो दीक्षा ले वीस वर्ष गुरुकुलवास में रहकर नौ पूर्वका अध्ययन कर विशेष गुण प्राप्तिके लिये गुरु आज्ञासे परिहार विशुद्ध संयमको स्वीकार करे । प्रथम छे मास तक च्यार मुनि तपश्चर्या करे च्यार मुनि तपस्वी मुनियोंकि व्यावञ्च करे एक मुनि व्याख्यान वांचे दुसरे छ मासमें तपस्वी मुनि व्यावच्च करे व्याव
वाले तपश्चर्या करे तीसरे छ मास में व्याख्यानवाला तपश्चर्या करे सात मुनी उन्होंकि व्यावञ्च करे, एक मुनि व्याख्यान वांचे । तपश्चर्यका क्रमः उष्णकालमें एकान्तर शीत कालमें छट छट पा. रणा चतुर्मासामें अठम अठम पारणा करे, एसे १८ मास तक तपश्चर्या करे । फीर जिनकल्पको स्वीकार करे अगर एसा न हो तो वापिस गुरुकुल वासाको स्वीकार करे। ( ४ ) सूक्ष्म संपराय संयमके दो भेद है। (१) संक्लेश परिणाम उपशम श्रेणिसे गिरते हुवेके (२) विशुद्ध परिणाम क्षपकश्रेणि छडते हुवेके (५) यथा ख्यात संयमके दो भेद है (११ उपशान्त बोतरागी (२) क्षिणवित. रागी जिस्में क्षिणवितरागीके दो भेद है (१) छदमस्त (२) केवली जिस्में केवलीका दोय भेद है १) संयोगी केवली १२) अयोगी केवली । द्वारम् .. (२) वेद-सामायिक सं० छदोपस्थापनियसं० सवेदी, तथा अवदा भी होते है कारण नौवा गुण स्थानके दो समय शेष र: