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अष्टप्रवचन.
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साताठ्ठ कर्मोंका-बन्ध अनंत संसारी और छे कायाकी अनुकम्पा रहित बतलाये है और निर्दोषाहार करनेवालेको शीघ्र संसार से पार होना बतलाया है । निर्दोषाहार ग्रहन करनेवाले मुनियोको निम्नलिखत दोषोंपर पूर्ण ध्यान रखना चाहिये ।
( १ ) आधाकर्मी दोष - जिनोंके पर्याय नाम च्यार है ( १ ) आधाकर्मी - साधुके निमत्त ले काया जीवोंकि हिंस्या कर अशनादि तैयार करे ( २ ) अधोकर्मी एसा दोषिताहार करनेवाले आखीर अधोगतिमें जाते हैं । ३) आत्मकर्मी - आत्माके गुण जो ज्ञान दर्शन चारित्र है उनके उपर आच्छादन करनेवाले है ( ४ ) आत्मन्नकर्मी - आत्मप्रदेशोंके साथ तीव्र कमका बन्ध घन माफिक करनेवाले है । आधाकर्मी आहार लेनेसे आठ जीव प्रायश्चितके भागी होते है यथा- आधाकर्मी आहार करनेवाला, करानेवाला लेनेवाला, देनेवाला, दीरानेवाला, अनुमोदन करनेवाला, खानेवाला, और आलोचना नही करनेवाला. इसवास्ते मुनिको सदैव निर्वाहार ही करना चाहिये ।
एक मुनि निर्वद्य फाक जल लेके जंगलमें ध्यान करनेको गया था उस जल भाजनको एक वृक्षके नीचे रख आप कुच्छ दूर चले गये थे. पीच्छे से सैन्य हित पीपासा पिडित एक राजा उन वृक्ष नीचे आया. मुनिका शीतल पाणी देख राजाने जलपान कर लिया. पीच्छे से राजाकि सैना आइ, उन मुनिके पात्रमें राजा अपना जल डालके सब लोक चले गये। कुच्छ देरी से मुनि उन वृक्ष नीचे आया; अपना जल समजके जलपान कीया. दोनो पाणीका असर पसा हुवा कि राजाको संसार असार लगने लगा, और योग धारण करने की इच्छा हुई. इधर मुनिकों योगसे रूची हटके संसार कि तर्फ चित्त आकर्षण होने लगा. देखिये सदोष, नि. दोष आहार पानीका कैसा असर है. आखीर समजदार श्रावकोंने