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( २३८) शीघ्रबोध भाग ४ था. - श्री दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रमें
(१) बालकके लिये बनाया हुवा आहार मुनि लेवे तो दोष है कारण बालक रोने लग जावे हठ पकड लेवे।
(२) गर्भवन्तीके लिये बनाया आहार लेवे तो दोष । । श्री वृहत्कल्पसूत्र में
(१) अशांन, पान, खादिम, स्वादिम यह च्यार प्रकारके आहार रात्री में वासी रखके भोमवे तो दोष ।
एवं ४२-५-२-२३-८-१२-५-६-२-२ सर्व १०६ जिस्में पांच दोष मांडलेके और १०१ दोष गोचरी लानेका है. द्रव्यसे इन दोषोंको टाले।
(२) क्षेत्रसे दो कोश उपरान्त ले जाके नही भोगवे (३) कालसे पहिलापहर का लाया चरमपहर में न भोगवे ।
(४) भावसे मांडलेके पांच दोष. संयोग, अंगाल, धूम, परिमाण, कारण इनी दोषों कों वर्ज के आहार करे उनसमय सरसराट चरचराट न करे स्वादके लिये एक गलाफका दुसरी गलाफमें न लेवे टेरा टीपके न डाले केवल संयम यात्रा निर्वाहने के लिये. गाडा के भांगण तथा गुमडेपर चगती कि माफीक शरीर का निर्वाह करने के लिये ही आहार करे| आहार पाणी के दोष दो प्रकार के होते हे। (१) आम दोष जोकि आम दोषवाला आहार पात्रमें आजावे तो भी परठने योग्य होते है। (२) गन्ध दोष जोकि सामान्य दोषीत आहार अनोपयोगसे आ जावे तो उनोकि आलोचना लेके भोगवीया जाते है । आम दोषवाला आहार बारहा प्रकारके है शेष गन्ध दोषवाला आहार समझना।
आधाकर्मी उद्देसीक पूतिकर्म, मिश्र, सूर्योदय पहलेका, सूर्यास्त पीच्छेका, कालातिक्रमका, मार्गातिक्रमका, ओछामें अ