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३६ बोल.
( २४९) है. और दूसरे श्रुत स्कंधके सात अध्ययन-पुष्करणीवावडीका० क्रियाका० भाषाका० अनाचारका आहारप्रज्ञा० आर्द्रकुमारका. उदक पेडालपुत्रका एवं २३
( २४ ) चौवीस तीर्थकर-ऋषभदेवजी, अजीत, संभव, अभिनंदन, सुमती, पद्मप्रभु, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभु, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, घासुपूज्य. विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पाव, वर्धमान एवं २४ तथा देवता-दश भुवनपति, आठ वाणव्यंतर, पांच ज्योतिषि, एक वैमानिक. एवं २४ देव।
( २५ ) पांच महाव्रतकी पचवीस भावना (संयमकी पुष्टी ) यथा पहिले महाव्रतकी पांच भावना-ई भावना, मनभावना, भाषाभावना, भंडोपगरण यत्नापूर्वक लेने रखनेकि भावना, आहारपानीकी शुद्ध गवेषणा करना भावना ॥ दूसरे महाव्रतकी पांच भावना-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखकर विचार पूर्वक बोले, क्रोधके बस न बोले (क्षमा करे ) लोभवस न बोले, (सन्तोष रखे ) भयवस न बोले ( धैर्य रखे) हास्यवस न बोले ( मौन रखे) ॥ तीसरे महाव्रतकी पांच भावना-विचार कर अ. विग्रह ( मकानादिकी आज्ञा ) ले, आहारपानी आचार्यादिककी आज्ञा लेकर वापरे, आज्ञा लेतां कालक्षेत्रादिककी आज्ञा ले, सा. धर्मीका भंडोपगरण पापरे तो रजा लेकर वापरे, ग्लानी आदिक की वैयावश्च करे ॥ चौथे महाव्रतकी पांच भावना-वारंवार बीके श्रृंगारादिककी कथा वार्ता न करे, वीके मनोहर इन्द्रियों को न देखे, पूर्वमें किये हुवे काम क्रीडाओंको याद न करे, प्रमाण · उपरान्त आहारपानी न वापरे, खीपुरुष नपुंसकवाले मकानमें न रहे ॥ पांचवे महाव्रतकी पांच भावना-विषयकारी शब्द न